अवतार के विषय में कहा गया है – अवतरति इति अवतारः। अर्थात् जो अवतरण करे अर्थ है कि जो ऊपर (दिव्य लोक) से नीचे (पृथ्वी लोक) पर आये, वही अवतार है।
पुराणों में अवतारों के प्रकारों के विषय में भी विस्तृत वर्णन दिया गया है।
पुरुष अवतार: जब ईश्वर मनुष्य के रूप में अवतरित होते हैं तो उसे पुरुष अवतार कहा जाता है। हालाँकि ये भगवान विष्णु के अवतारों के लिये विशेष रूप से प्रयुक्त होता है। जो वास्तव में महाविष्णु का विस्तार रूप होता है।
विमावतार: जब भगवान स्वयं आते हैं तो वो विमावतार कहलाता है। विमावतार दो प्रकार के होते हैं।
साक्षात् अवतार: ये ईश्वर का साक्षात् रूप होता है, अर्थात् ईश्वर अपनी समस्त क्षमताओं के साथ अवतरित होते हैं। आवेश अवतार: आवेश अवतार में भी ईश्वर की शक्तियाँ निहित होती हैं किन्तु उतने स्पष्ट रूप में नहीं जितनी साक्षात्
अवतार में होती हैं। आवेश अवतार भी दो प्रकार के होते हैं। शक्ति आवेश: इस अवतार में केवल ईश्वर की शक्ति आती है। रूप आवेश: इस अवतार में ईश्वर स्वयं प्राणी के रूप में आते हैं।
अंशावतार: इस अवतार को कलावतार भी कहते हैं। पृथ्वी पर भगवान का अवतार अधिकतम १६ कलाओं के साथ ही हो सकता है। तो १-१६ कलाओं के साथ अवतरित होने पर वे अंशावतार अथवा कलावतार कहलाते हैं।
पूर्णावतार: जो ईश्वर की सभी १६ कलाओं के साथ अवतरित हों उन्हें पूर्णावतार कहा जाता है। श्रीहरि के दशावतार में केवल श्रीकृष्ण ही उन सभी १६ कलाओं के साथ अवतरित होते हैं।इसीलिये उन्हें ही पूर्णावतार कहा जाता है। सभी १६ कलाओं से युक्त होने के कारण ही श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के सर्वाधिक समकक्ष माने जाते हैं।
विभूति अवतार: जब कोई अवतार १ कला से भी कम होता है तो उसे विभूति अवतार कहते हैं।
चतुर्व्यूह अवतार: ये विशेष अवतार है जो हर बार नहीं होता। इसमें भगवान अपने अलग-अलग अंश से एक ही कालखण्ड में ४ अलग-अलग रूपों में अवतरित होते हैं जो एक साथ मिलकर किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति करते हैं। जैसे श्रीराम, भरत, लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न रामावतार के चतुर्व्यूह रूप हैं। उसी प्रकार श्रीकृष्ण, बलराम, प्रद्युम्न एवं अनिरुद्ध कृष्णावतार के चतुर्व्यूह रूप हैं।
गुणवतार: ये गुणों पर आधारित है। विष्णु सतगुण, ब्रह्मा रजोगुण एवं शंकर तमोगुण का प्रतिनिधित्व करते हैं। उसी प्रकार विभिन्न अवतार भी अलग-अलग गुणों के होते हैं, जैसे दशावतार में श्रीराम सतोगुण, श्रीकृष्ण रजोगुण एवं परशुराम तमोगुण का प्रतिनिधित्व करते हैं।
कल्पावतर: ये अवतार कल्प में एक बार होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि मत्स्य से लेकर श्रीकृष्ण तक, श्रीहरि के ये ९ अवतार कल्पावतर हैं। अर्थात् ये एक कल्प में केवल एक ही बार अवतरित होते हैं।
मन्वन्तरावतार: एक मन्वन्तर में एक बार अवतरित होने वाले अवतार मन्वन्तरावतार कहलाते हैं। ये अवतार परमपिता ब्रह्मा के रूप माने जाते हैं। अर्थात् एक कल्प में ब्रह्मा के १४ मन्वन्तरावतार होते हैं, जिन्हें आम भाषा में मनु भी कहा जाता है।
युगावतार: ये हर युग में अवतरित होते हैं। श्रीहरि के दशावतार में केवल भगवान कल्कि ही युगावतार हैं, अर्थात् ये हर युग में एक बार अथवा एक कल्प में १००० बार अवतरित होते हैं।
लीलावतार: भगवान विष्णु के २४ अवतार लीलावतार कहलाते हैं। ये हैं – सनकादि ऋषि, वराह, नारद, हंस, नर-नारायण, कपिल, दत्तात्रेय, यज्ञ, ऋषभदेव, पृथु, मत्स्य, कूर्म, धन्वन्तरि, मोहिनी, हयग्रीव, नृसिंह, वामन, गजेन्द्र मोक्ष, परशुराम, वेदव्यास, राम, कृष्ण, वेंकटेश्वर एवं कल्कि।
अर्चावतार: यहाँ ईश्वर स्वयं अवतरित ना होकर किसी प्रतीक अथवा मूर्ति के रूप में अवतरित होते हैं।
नैमित्तिक अवतार: ईश्वर के ऐसे अवतार जो कभी – कभी, किसी विशेष प्रयोजन हेतु अवतरित होते हैं। लीलावतारों को कई बार नैमित्तिक अवतार में भी गिना जाता है। नित्यावतार: लौकिक अवतार…!