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उत्तराखंड के गैरसैंण राज्य की कुछ विशेषताएं। Some features of Gairsain state of Uttarakhand.

गैरसैंण उत्तराखंड, के चमोली जिले में स्थित एक बेहद खूबसूरत स्थल है, जो गढ़वाल मंडल के मध्य में है। यह दुधाटोली पहाड़ी पर बसा हुआ है और इसे उत्तराखंड की पामीर के नाम से भी जाना जाता है।

गैरसैंण से देहरादून की दूरी लगभग 260 किलोमीटर है, जबकि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी करीब 450 किलोमीटर है। यहाँ से रामगंगा नदी का उद्भव भी होता है, जो इस क्षेत्र की जलवायु और पारिस्थितिकी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

गैरसैंण का प्राकृतिक सौंदर्य, शांत वातावरण और सांस्कृतिक धरोहर इसे पर्यटकों के लिए आकर्षक बनाते हैं। यह स्थान धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व भी रखता है, और यहाँ की सुंदरता और शांति इसे एक आदर्श पर्यटन स्थल बनाती है।

गैरसैंण का अर्थ
गैरसैंण “गैर” तथा “सैंण” दो स्थानीय बोली के शब्दों से मिलकर बना है। गैर का पर्याय गहरे स्थान से है और सैंण पर्याय मैदानी भू-भाग से है। गैरसैंण का अर्थ है ‘गहरे में समतल मैदान’

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गैरसैंण का इतिहास
गढ़वाल क्षेत्र में स्थित गैरसैंण को प्राचीन कथाओं तथा ग्रंथों में केदार क्षेत्र या केदारखंड कहा गया है। प्राचीन कथाओं के अनुसार इस जगह का पहला शासक यक्षराज कुबेर था।

बेहद ही सुंदर है गैरसैंण
समुद्र तल से 5750 फुट की ऊंचाई पर स्थित गैरसैंण बेहद ही सुंदर जगह है। भौगोलिक दृष्टि से यहां की जलवायु को तरगर्म माना जाता है। 7.53 वर्ग किलोमीटर में गैरसैंण फैला हुआ है और 2011 की जनगणना के अनुसार इस क्षेत्र की कुल जनसंख्या 7138 है जिसमें पुरुषों की संख्या 3,582 तथा महिलाओं की संख्या 3,556 है। यहां की साक्षरता दर 87.27 प्रतिशत है।

दुधाटोली पहाड़ी पर स्थित है गैरसैंण
उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के चमोली में स्थित गैरसैंण दुधाटोली पहाड़ी पर स्थित है और इसे उत्तराखंड की पामीर के नाम से भी जाना जाता है। रामगंगा नदी का उद्भव भी यहीं हुआ है।

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कुमाऊंनी-गढ़वाली सभ्यता व संस्कृति का अनूठा संगम
गैरसैंण में कुमांऊॅंनी-गढ़वाली सभ्यता व संस्कृति का अनूठा संगम देखने को मिलता है। यहां पर कुमांऊॅंनी और गढ़वाली दोनों भाषाएं बोली जाती हैं।

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