ड्रास, जिसे अक्सर “लद्दाख का द्वार” कहा जाता है, जम्मू और कश्मीर के कर्गिल जिले में स्थित है। यह भारत का सबसे ठंडा बसेरा हुआ स्थान है और यहां का सर्दी का मौसम इतना कठोर होता है कि तापमान -50°C तक गिर सकता है। यह स्थान न केवल भौगोलिक दृष्टि से अद्भुत है, बल्कि यह पृथ्वी के कुछ सबसे कठोर मौसमों में इंसान की सहनशीलता और जीवित रहने की क्षमता का प्रतीक भी है।
भौगोलिक स्थिति और जलवायु:
ड्रास हिमालय की तलहटी में स्थित है, और इसकी ऊँचाई लगभग 3,300 मीटर (10,827 फीट) समुद्रतल से है। यहाँ की भूमि पर बर्फीले नदियाँ, ऊँची पर्वत श्रंखलाएँ और सर्दी के मौसम में बर्फ की मोटी चादर बिछी रहती है। ज़ंस्कार रेंज के पास होने के कारण, ड्रास में उप-आर्कटिक जलवायु है, जिसमें सर्दियाँ बेहद कठोर और गर्मी बहुत कम होती है।
ड्रास का सर्दी का तापमान भारत में सबसे कम दर्ज़ किया गया है। नवम्बर से फरवरी तक, यहाँ का तापमान -40°C से -50°C तक गिर सकता है, जिससे यह भारत का सबसे ठंडा बसेरा हुआ स्थान बनता है।
2. सर्दियों में ड्रास में जीवन:
ड्रास में ठंडे मौसम में जीवित रहना एक अद्वितीय अनुभव है और यहाँ के निवासी विशेष प्रकार से इन परिस्थितियों के अनुकूल होते हैं। यहाँ के लोग मुख्य रूप से लद्दाखी और कश्मीरी मुसलमान हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी इस कठोर वातावरण में जीवन जीने की कला जानते हैं।
आवास:
सर्दियों के दौरान लोग पारंपरिक पत्थरों से बने घरों में रहते हैं, जिनकी दीवारें मोटी होती हैं ताकि ठंड से बचाव हो सके। छतों पर अक्सर तिरपाल या अन्य स्थानीय सामग्री डाली जाती है ताकि बर्फ का जमाव न हो। घरों के अंदर गर्मी के लिए लकड़ी की चूल्हियाँ या “कंगरी” (एक पारंपरिक पोर्टेबल हीटर) का उपयोग किया जाता है।
वस्त्र:
ड्रास के लोग भारी ऊनी कपड़े पहनते हैं, जैसे कि पैडेड जैकेट, मोटे ऊनी मोज़े, दस्ताने और फर से बने बूट, जो उन्हें ठंडी से बचाते हैं। ठंड इतनी तीव्र होती है कि कभी-कभी घर के अंदर भी तापमान शून्य के आसपास होता है, इसीलिए लोग कई मोटे कंबल और रजाइयों में लिपट कर सोते हैं।
3. भोजन और जीवित रहने के उपाय:
ड्रास के निवासियों की भोजन आदतें विशेष रूप से ठंडे मौसम के लिए अनुकूलित होती हैं। यहाँ का पारंपरिक लद्दाखी और कश्मीरी खाना ऊर्जा से भरपूर और शरीर को गर्म रखने में मदद करता है।
पारंपरिक व्यंजन:
काहवा: यह पारंपरिक हरी चाय होती है, जिसे केसर, बादाम और इलायची के साथ पकाया जाता है, और सर्दी में शरीर को गर्म रखने के लिए इसका सेवन किया जाता है।
थुक्पा: यह एक गरम सूप होता है, जिसमें मांस, सब्ज़ियाँ और नूडल्स होते हैं, और यह शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है।
रोगन जोश और यख़नी: ये मसालेदार मांसाहारी व्यंजन होते हैं जो मटन या बकरियों के मांस से बनते हैं और शरीर को गरम रखने में मदद करते हैं।
त्साम्पा (भुना हुआ जौ का आटा): यह इस क्षेत्र का मुख्य भोजन है, जिसे आमतौर पर मक्खन वाली चाय या पानी के साथ मिलाकर खाया जाता है। यह ऊर्जा से भरपूर होता है और बनाने में आसान होता है।
मक्खन वाली चाय (चाय): यह एक खास चाय होती है, जिसमें चाय पत्तियाँ, याक का मक्खन, नमक और पानी डाला जाता है। यह एक प्रमुख ऊर्जा और वसा का स्रोत होती है और ठंड से बचने के लिए शरीर को गर्म रखने में मदद करती है।
4. चुनौतियाँ और अनुकूलन:
ड्रास में सर्दियों का मौसम बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। यहाँ की बर्फीली ठंड जीवन के लिए खतरे का कारण बन सकती है, खासकर उन लोगों के लिए जो इन ठंडी परिस्थितियों के आदी नहीं होते।
पानी का जमना: सर्दियों में पानी की आपूर्ति अक्सर जम जाती है, इसलिए लोग या तो जमा हुआ बर्फ पिघलाकर पानी पीते हैं या पानी को संचित रखते हैं।
संसाधनों की कमी: ज़ोजी ला पास के बर्फ से ढके रास्ते के कारण ड्रास तक आने-जाने में मुश्किल होती है, जिससे यहाँ बुनियादी सामान जैसे भोजन और ईंधन की कमी हो सकती है। स्थानीय निवासी ज्यादातर स्थानीय उपज और संरक्षित खाद्य सामग्री पर निर्भर रहते हैं।
बिजली आपूर्ति:बिजली यहाँ एक लक्ज़री है और सर्दियों में अक्सर कटौती होती है। लोग आमतौर पर कच्ची तेल की लालटेन या लकड़ी के चूल्हे का उपयोग करते हैं।