Home » General Knowledge » प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में ‘उत्तरी भारत’ को आर्यावर्त (आर्यों का निवासस्थान) कहा गया है।

प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में ‘उत्तरी भारत’ को आर्यावर्त (आर्यों का निवासस्थान) कहा गया है।

ऋग्वेद में आर्यों का निवासस्थल “सप्तसिंधु” प्रदेश के नाम से अभिहित किया जाता है। ऋग्वेद के नदीसूक्त (10/75) में आर्यनिवास में प्रवाहित होनेवाली नदियों का एकत्र वर्णन है जिसमें मुख्य ये हैं – कुभा (काबुल नदी), क्रुगु (कुर्रम), गोमती (गोमल), सिंधु, परुष्णी (रावी), शुतुद्री (सतलज), वितस्ता (झेलम), सरस्वती, यमुना तथा गंगा। यह वर्णन वैदिक आर्यों के निवासस्थल की सीमा का निर्देशक माना जा सकता है।

ब्राह्मण ग्रंथों में कुरु पांचाल देश आर्य संस्कृति का केंद्र माना गया है जहाँ अनेक यज्ञयागों के विधान से यह भूभाग “प्रजापति की नाभि” कहा जाता था। शतपथ ब्राह्मण का कथन है कि कुरु पांचाल की भाषा ही सर्वोत्तम तथा प्रामाणिक है।

उपनिषद्काल में आर्यसभ्यता की प्रगति काशी तथा विदेह जनपदों तक फैली। फलत: पंजाब से मिथिला तक का विस्तृत भूभाग आर्यों का पवित्र निवास उपनिषदों में माना गया है ।

आर्यावर्त की सीमा। 
धर्मसूत्रों में आर्यावर्त की सीमा के विषय में बड़ा मतभेद है। वशिष्ठधर्मसूत्र (1.8-9) में आर्यावर्त की यह प्रख्यात सीमा निर्धारित की गई है कि यह आदर्श (विनशन; सरस्वती के लोप होने का स्थान) के पूर्व, कालक वन (प्रयाग) के पश्चिम, पारियात्र तथा विंध्य के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में है। अन्य दो मतों का भी यहां उल्लेख है कि (क) आर्यावर्त गंगा और यमुना के बीच का भूभाग है और (ख) उसमें कृष्ण मृग निर्बाध संचरण करता है। बौधायन (धर्मसूत्र 1.1.27), पतंजलि (महाभाष्य 2.4.10 पर) तथा मनु (मनुस्मृति 2.17) ने भी वसिष्ठोक्त मत को ही प्रामाणिक माना है। मनु की दृष्टि में आर्यावर्त मध्यदेश से बिलकुल मिलता है और उसके भीतर “ब्रह्मवर्त” नामक एक छोटा, परंतु पवित्रतम भूभाग है, जो सरस्वती और दृषद्वती नदियों द्वारा सीमित है और यहां का परंपरागत आचार सदाचार माना जाता है। आर्यावर्त की यही प्रामाणिक सीमा थी और इसके बाहर के देश म्लेच्छ देश माने जाते थे, जहां तीर्थयात्रा के अतिरिक्त जाने पर इष्टि या संस्कार करना आवश्यक होता था। बौधायनधर्मसूत्र (1.1.31) में अवंति, अंग, मगध, सुराष्ट्र, दक्षिणापथ, उपावृत्, सिंधुसौविर, चंपा, कंबोज, गांधार, कुशस्थाली, कलिंग, ब्रह्मादेश, त्रीभुवन, पर्शव, ताम्रपरणि, द्रविड़ राज्य, कर्हाटक, प्रतिस्थान, जनस्थान, कोशल, गोकर्ण, आंध्र आदि आर्य देशों में गिनाए गए हैं।

यह भी पढ़िये :-  बेडू के पेड़ का 24 cm चौड़ा पत्ता।

परंतु आर्यों की संस्कृति और सभ्यता ब्राह्मणों के धार्मिक उत्साह के कारण अन्य देशों में भी फैली जिन्हें आर्यावर्त का अंश का न मानना सत्य का अपलाप होगा। मेधातिथि का इस विषय में मत बड़ा ही युक्तिपूर्ण प्रतीत होता है। उनका कहना है कि “”जिस देश में सदाचारी क्षत्रिय राजा म्लेच्छों को जीतकर चातुर्वर्ण्य की प्रतिष्ठा करे और म्लेच्छों को आर्यावर्त के चांडालों के समान व्यवस्थित करे, वह देश भी यज्ञ के लिए उचित स्थान है, क्योंकि पृथ्वी स्वत: अपवित्र नहीं होती, बल्कि अपवित्रों के संसर्ग से ही दूषित होती है”” (मनु 2.23 पर मेधातिथिभाष्य)। ऐसे विजित म्लेच्छों देशों को भी मेधातिथि आर्यावर्त के अंतर्गत मानने के पक्षपाती हैं।

Related posts:

श्रीनगर गढ़वाल: 286 वर्ष पुरानी राजधानी, अब उत्तराखंड के प्रमुख शहरों में एक!

General Knowledge

उत्तराखंड की सबसे पुरानी और सबसे पहली झील। The oldest and the first lake of Uttarakhand.

General Knowledge

उत्तराखंड मे प्राचीन शैली से बने मिट्टी के घर जिन्हे "पहाड़ी कुड़ी" भी कहा जाता है।

Culture

पहाड़ी शैली में बने "पठाल" की छत वाले घर उत्तराखण्ड की समृद्ध वास्तुकला के प्रतीक हैं। 

General Knowledge

बेडू के पेड़ का 24 cm चौड़ा पत्ता।

General Knowledge

उत्तराखंड के लोक गायक पप्पू कार्की का जीवन परिचय। Biography of Uttarakhand folk singer Pappu Karki.

General Knowledge

1868: गंगोत्री के एक ग्रामीण की सबसे पुरानी तस्वीरों में से एक।

General Knowledge

पहाड़ी शैली में बने "पठाल" की छत वाले घर उत्तराखण्ड की समृद्ध वास्तुकला के प्रतीक हैं।

General Knowledge

देवप्रयाग जहां श्री राम जी ने ब्रह्म हत्या के दोष निवारणार्थ अलकनन्दा भागीरथी के संगम पर तपस्या की थ...

Culture

About

नमस्कार दोस्तों ! 🙏 में अजय गौड़ 🙋 (ऐड्मिन मेरुमुलुक.कॉम) आपका हार्दिक स्वागत 🙏 करता हूँ हमारे इस अनलाइन पहाड़ी 🗻पोर्टल💻पर। इस वेब पोर्टल को बनाने का मुख्य उद्देश्य 🧏🏼‍♀️ अपने गढ़ समाज को एक साथ जोड़ना 🫶🏽 तथा सभी गढ़ वासियों चाहे वह उत्तराखंड 🏔 मे रह रहा हो या परदेस 🌉 मे रह रहा हो सभी के विचारों और प्रश्नों/उत्तरों 🌀को एक दूसरे तक पहुचना 📶 और अपने गढ़वाली और कुमाऊनी संस्कृति 🕉 को बढ़ाना है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*
*