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काश कि इन गाड़ियों की छतों में हल्द्वानी से सेब और आम की पेटियां भी इसी तरह वापस आती तो कितना अच्छा होता

दो दिन के लिए बहू बारात में शामिल होने गॉंव आयी और सास ससुर का प्यार देखिए सारे संतरे सारे दाल सारे आलु और जितनी‌ दाल घर में तीन महीनों से सम्भाली थी सब कट्टो में भर दी और पड़ोस पेंछा (उधार ) घी लेकर बहू को दे दिया और समझाया जब नाती स्कूल जाए तो रोटी पर लगा देना।


बहू को अचानक से याद आ गया कि गेहूं भी है भकार (अनाज रखने वाला बक्सा) में कुछ गेहूं है तो सास ने वह गेहूं भी पैक कर दिया सास ससुर का प्यार देखकर मेरी आंखों में आंसू आ रहे हैं मेरा इन बहूओं से निवेदन है कि कृपया आप हल्द्वानी में यह ना बोले कि पहाड़ में कुछ नहीं रखा है ये गाड़ी की छतें और ऐसी सास और ससुर उदाहरण है पहाड़ में ही सब कुछ है अबकी बार जब गर्मियों की छुट्टिया मनाने घर में आये तो यह छत में आम और सेब की पेटियां से लदे हो और अपने सास-ससुर का सम्मान करें, बेचारे सास ससुर ने 6 महीने से इन संतरे और आलु पर किसी भी गांव वालों को हाथ भी नहीं लगाने दिया तुम्हारे लिए ।

यह भी पढ़िये :-  विलुप्त होती घर के छत लगाने की प्राचीन और पक्की विधि स्लेट वाली छतें।

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