अपने समय मे कभी यह मकान महलों से कम नही होते थे इन मकानों का निर्माण लकड़ी पत्थर से किया गया था देवदार कि लकड़ी से बने यह मकानो कि आज भी लाखों में है।
आजकल के इस आधुनिक दौर के लोग कंकड़ पत्थर और सीमेंट से बने आलीशान भवनों में रहना पसंद करते हैं लेकिन पुराने दौर मे देवदार की लकड़ी और पत्थरों से बने पहाड़ी मकान अब गुजरे जामने कि बात हो चुकी है इस तरह के मकानो की खास बात यह होती थी कि यह पूरी तरह से भूकंप रोधी होते थे काष्ठ कला से बने मकानों का अस्तिव खत्म होता जा रहा है।
उत्तराखण्ड में सैकड़ों वर्ष पुराने लकड़ी के घर आज भी वैसे ही मजबूती से खड़े हैं जैसे सौ साल पहले थे आज भी आप को पहाड़ों पर लकड़ी के घर देखने को मिल जाएंगे लेकिन अब इन को बनाने वाले कारीगरों की कमी हो गयी है लकड़ी मिलना मुश्किल हो रहा है इसलिए अब लोग ऐसे भवन नही बना रहे हैं।
पलायन कि मार झेल रहे उत्तराखण्ड के लोग अगर कोशिश करे तो अपने पुर्खो के पुराने बंजर पड़े पुश्तैनी मकानों को होमस्टे में बदलकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं पुराने घरो को होमस्टे मे तब्दील कर न सिर्फ आमदनी में बढ़ोतरी होगी बल्कि पर्यटकों को भी उनके घर से दूर रहकर भी अपने पुराने घर पुर्खो के रहने खाने पीने के अंदाज जैसे घर का अहसास भी करवा सकते हैं।
यदि एसा होता हैं तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि होम स्टे के जरिए रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीदों को जरूर पंख लगेंगे और जो लोग अपने पुश्तैनी मकानों को अकेला कर रोजगार या किसी और कारण से गांवों को छोड़ शहर चले गए हैं वह जरूर वापस लौटेंगे क्योंकि महंगे होटलो को छोड़कर होम स्टे’ में बढ़ रही पर्यटकों की दिलचस्पी, रोजगार के साथ गुलजार हों सकते हैं उत्तराखण्ड के गांव।