
गौरी शंकर एक पर्वत शिखर है,ऊँचाई 29,031 फीट। हमारे पुराणों ने इसे गौरी शंकर कहा गया है क्योंकि हमारे पूर्वज मानते थे कि इस पर्वत के उतुंग शिखर पर महादेव अपनी पत्नी गौरी के साथ विचरण करते हैं।
इसी पर्वत को हमारे पूर्वजों ने सागर माथा भी कहा यानि अगर हम सागर की ओर से चलें और दृष्टि ऊपर करें तो इसी पर्वत के शिखर को हम देख पातें हैं (भाव रूप में) क्योंकि ये सबसे ऊँची है। नेपाल में इसे अब भी सागरमाथा ही कहा जाता है।
यह पर्वत शिखर प्रभु राम के पूर्वज राजा सगर की भी तपःस्थली थी।स्वामी दयानंद सरस्वती जिस तिब्बत को मानव-सभ्यता की उदगम स्थली मानते हैं, उस तिब्बत के लोग इस पर्वत शिखर को चोमोलुंगमा कहते हैं।
मगर हम लोग इसे क्या कहते हैं?
हम हिन्दू इस पर्वत शिखर को “एवरेस्ट” कहते हैं?
क्यों कहते हैं?
क्योंकि सन 1852 में एक अंग्रेज सर्वेयर था ‘जॉर्ज एवरेस्ट”, उसने इसका एक नक्शा बनाया और हल्ला मचाया कि इस पर्वत की खोज उसने की है और इस झूठ को वो दुनिया भर में लेकर गया। सन 1865 में जब ये आदमी रिटायर होकर अपने देश इंग्लैंड जा रहा था तो उसके रिटायरमेंट फेयरवेल में बतौर तोहफ़ा उसके नाम पर इस शिखर का नाम एवरेस्ट रख दिया गया।
और हम भी उसे सागरमाथा, गौरी-शंकर के नाम से पुकारना छोड़कर एवरेस्ट कहने लग गये।