उत्तराखंड में स्वरोजगार! यह सुनते ही बहुत से लोग निगेटिव पहलु गिनाने लग जाते हैं। तर्क दिया जाता है कि जब बड़ी कंपनियां नहीं हैं तो हम अपना रोजगार कैसे खड़ा कर पाएंगे। यह चलेगा कैसे? अब सवाल यह कि एक धारणा बनाकर कुछ न करना सही है, या पूरी मेहनत, लगन के साथ प्रयास करना। जो लोग बनी बनाई धारणा में नहीं उलझे उन्होंने एक कामयाब मॉडल खड़ा करके दिखा दिया।
मिलिए, युवा व्यवसायी योगेश बधानी और ऋचा डोभाल से, जिन्होंने घर की रसोई से शुरू किया काम, आज अपने ही गांव में खड़ा कर दिया बड़ा व्यवसाय। आज उसके विभिन्न प्रकार के जूस, चटनी व अचार के दिवाने बनते जा रहे हैं बड़े बड़े शहरों के ग्राहक।
परिवार सहित गांव की 25 महिलाएं प्रत्यक्ष रूप से और सैकड़ों लोगों को गांव में ही अप्रत्यक्ष रूप से मिल रहा है रोजगार।
वे गहन अनुसंधान के बाद अब फलों के छिलकों व वेस्ट मेटेरियल से तैयार जैविक डिटर्जेंट, रुम व बाथरूम क्लिनर जल्दी ही बाजार में उतारने वाले हैं, जो बाजार में उपलब्ध कैमिकल युक्त उत्पादों के ख़तरों से घरेलू काम काजी महिलाओं को बचाएंगे।
अनेक संघर्षों और उतार चढ़ावों के बाद अब तेजी से बढ़ने लगा है, योगेश का व्यवसाय, अधिकतर उत्पाद पहाड़ के जैविक उत्पादों से ही हो रहे हैं तैयार।
योगेश बधानी और ऋचा डोभाल की ये सक्सेस स्टोरी हमें बताती है कि कैसे पहाड़ में रहकर यहां के संसाधनों की मदद से भी अपना कारोबार स्थापित किया जा सकता है। उनका यह प्रयास महिला सशक्तीकरण की भी एक मिसाल है।