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उत्तराखंड में रिंगाल से स्वरोजगार की राह।

हिमालयी महाकुंभ नंदा देवी राजजात यात्रा में रिंगाल की छंतोली से लेकर रिंगाल के विभिन्न उत्पाद आज भी लोगों को बेहद भाते हैं। रिंगाल से जहां केवल पांच या छह प्रकार का सामान बनाया जाता था वहीं अब 200 से अधिक प्रकार का सामान बनाया जा रहा है।

Ringal is creating new opportunities for self-employment in Uttarakhand
रिंगाल देव भूमि उत्तराखंड के ऊंच घने जंगलों में पाया जाने वाला एक वृक्ष है। ये वृक्ष बाँस प्रजाति का है। बाँस और रिंगाल के बीच अंतर बस इतना है कि बाँस आकार में बहुत बड़ा होता है और रिंगाल थोड़ा छोटा। रिंगाल और बाँस की लकड़ियों की बनावट और पत्तियाँ लगभग एक समान ही होती हैं।

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रिंगाल 1000-7000 फ़ीट की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है क्योंकि रिंगाल को पानी और नमी की आवश्यकता ज्यादा रहती है वही बाँस सामान्य ऊँचाई वाले क्षेत्रों में आसानी से पाया जाता है। रिंगाल पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के अलावा भूस्खलन को रोकने में भी सहायक होता है।

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उत्तराखंड में रिंगाल की 12 प्रजाति होती है लेकिन ज्यादातर जगहों पर आठ प्रकार का रिंगाल पाया जाता है। देव रिंगाल,थाम रिंगाल, मालिंगा रिंगाल, गोलू (गड़ेलू) रिंगाल, ग्यंवासू रिंगाल,सरुड़ू रिंगाल,भट्टपुत्रु रिंगाल, नलतरू रिंगाल। लेकिन सबसे उत्तम प्रजाति का रिंगाल देव रिंगाल होता है।


रिंगाल उत्तराखण्ड के लोकजीवन का अभिन्न अंग है। इसके बिना पहाड़ के लोकला की परिकल्पना नहीं की जा सकती है। रिंगाल से दैनिक जीवन में काम आने वाले जरुरी उपकरण तो बनते ही हैं, इनसे कई तरह के आधुनिक साजो-सामान भी बनाये जा रहे हैं।

आत्मनिर्भर उत्तराखंड की ओर बढ़ते कदम

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