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सतपुतिया !आम भाषा में तोरई या झींगी भी लोग कहते हैं!

सत +पुतिया जैसा की नाम से ही पता चलता है कि सत अर्थात सात पुतिया शब्द पुत मतलब पुत्र से लिया गया है। पुराने किस्से कहानी में अक्सर राजा, बनिया इत्यादि के सात पुत्र का वर्णन मिलता है। जैसा की इसका नाम सात पुत्र से संबंधित है उसी प्रकार इसको खाने के पीछे भी वजह है। उत्तर प्रदेश, बिहार या अन्य राज्यों में पुत्र के लम्बी आयु, उत्तम स्वास्थ्य के लिए माताएँ ” ज्यूतिया “नाम का व्रत करती है। उस व्रत में सतपुतिया की सब्जी खाना अनिवार्य माना जाता है।

जहाँ पर आसानी से उपलब्ध हो जाती है वहाँ पर तो नहीं लेकिन पंजाब जैसे राज्यों में जहाँ पर इसकी खेती नहीं होती लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार के रहने वाले अधिक है और व्रत के दिन इस सब्जी की मांग होती है। व्रत वाले दिन वहाँ पर तो ये सोने के भाव बिकती है। उसी दिन ही सिर्फ सब्जी मंडी में दिखाई भी देती है। गांव में तो गन्ने, मक्के के खेत में बो दी जाती है, कहीं खेतों की मेढ़ पर बो देते है और डंडे गाड़ कर रस्सी बांधकर चढ़ा देते है। ये ऐसी सब्जी है जिसका अपना कोई खेत नहीं होता है ये सहफ़सल के रूप में अन्य सब्जी या फ़सल के साथ खेत के किनारे या छप्पर, टाटी पर लटक कर अपना जीवन व्यतीत कर लेती है। खेतों की मेढ़ पर बाढ़ जिसे हमारे अवध क्षेत्र में पाढ कहते है उस पर खूब फ़ैल जाती है। शाम के समय इस पर छोटे छोटे पीले फूलों की बाहार आ जाती है जिस पर तितलियाँ, भौरे गुन गुन गाते हुए आनंद लेते है।

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ये सात फल के गुच्छे में होती है इसलिए इसका नाम सतपुतिया पड़ा है। ये चार अंगुल से अधिक बड़ी नहीं होती है। बस जैसे ही तनिक हष्ट पुष्ट दिखे तोड़ लीजिये। सुबह सुबह इसे नहला धुला कर, काट लीजिये। लोहे की कड़ाही में सरसों के तेल में,लहसुन,मिर्च का डाढ़ा (तड़का )देकर इसे धीमी आंच पर बनाइये। ये सब्जी पानी अधिक छोड़ती है इसलिए जब इसका पानी लगभग सूख जाये तब तीखा, चटपटा मिर्ची वाला नमक डालें। जब कड़ाही में हल्की हल्की चिपकने लगे तब समझिये पक गयी है। फिर क्या गर्म गर्म रोटी या पराठे के साथ सुबह के नाश्ते का आनंद लें और स्वस्थ रहे, हमेशा निरोगित रहे।

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