
उत्तराखंड में चलता फिरता जंगल…
यह चित्र कोई पहाड़ों में चलता-फिरता वन का न होकर पहाड़ की श्रमशील महिलाओं की गाथा बता रहा है। पहाड़ों की महिलाएं प्रातःकाल घर का कामकाज निपटाकर जंगल की ओर चली जाती हैं । फिर वहां अपने गाय बैल को खिलाने तथा चूल्हा जलाने के लिए घास लड़कियां काटकर दोपहर के पसीने के साथ लकड़ी घास के गट्ठर को अपने पीठ पर लादकर घर पहुंचती है । फिर चूल्हा जलाकर परिवार के लिए खाना बनाती है।
जंगल पहाड़ के जीवन से जुड़े हुए होते हैं । पहाड़ की लड़की का जब दूसरे गांव में विवाह हो जाता है, तो उसे अपने मायके के घर गांव से अधिक अपने मायके का जंगल याद आता है । इसलिए वह गाना गाती है –
हैं ऊंची ऊंची डांड्यों, तुम निस ह्वे जावा