देवभूमि उत्तराखंड में पलायन के बाद ऐसे ही बहुत से घर आज विरान पड़ चुके हैं। ऐसे में बहुत दिनों से खाली पड़े ये घर भी अब धीरे-धीरे जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच चुके हैं। गांव की ऐसी तस्वीरों को देखकर दिल में बहुत दुःख होता हैं। कही न कही शहर की आधुनिकता पहाड़ों की खूबसूरती को धीरे-धीरे खा गई।
हमारे पूर्वजों ने जो घर बनाए थे वो भूकम्प में अवश्य खिसकते थे औऱ दरारें भी पड़ती थी पर किसी की मौत नही होती थी,लेकिन वो वर्तमान बिल्डिंगों की तरह धराशायी नहीं होते थे !
हमारे पूर्वज एक सीमित जगह में सुखी से जीवन व्यतीत करके चले गए । लेकिन आज का मानव अपना पूरा जीवन “कोठी के ऊपर कोठी” बनाने में बर्बाद कर देते है।
सही बात है