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उत्तराखंड में एक “बूढ़े बैल की आत्मकथा” मेरे मालिक ने मेरे कान का टैग तक काटकर मूझे ऐसे छोड़ दिया।

मैं बैल हूं जबतक मैं जवान था मेरे मालिक ने मुझे अपने घर रखा मैंने उसके यहां हल बाया उसकी खेती की दैं हकाई गेहूं माने आज मैं बूढ़ा हो गया मेरे मालिक ने मेरे कान का टैग तक काटकर मूझे ऐसे छोड़ दिया मैं लोगों का नुकसान कर रहा हूं लोग मुझे मार मार कर यहां से वहां हांक रहे हैं मैं सभ्य कहे जाने वाले मानव समाज से पुछ रहा हूं मुझे क्यों मारते हो मेरा क्या कसूर है जिसके लिए मैंने जीवन खपाया उससे पुछो बुढ़ापे में मुझे ऐसे क्यों छोड़ा। 

मनुष्य आज इतना मतलबी बन गया है कि वह जिन माँ-बाप की कृपा से जो भी है परन्तु माँ-बाप क़ो भी घर से निकाल देते हैं, कोई तो वृद्ध आश्रम पहुंच जाते हैं कोई वहां भी नहीं पहुंच सकता हैं l यह बेचारा अब बाघ का ही इंतज़ार कर रहा होगा

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