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एक समय था जब उत्तराखंड की गावों की शादियों में टेंट नहीं होते थे।

एक समय था जब गांव में टेंट नहीं होते थे। पारिवारिक कार्यक्रमों में, सब सामान गांव से जुटाया जाता था। बिस्तर, दूध, दही—सब मिलकर ही तैयार होता था। बारात आती तो पूरा गांव एक घर की तरह एकजुट हो जाता। बुजुर्ग बिना खाए ही मेहमानों की सेवा करते थे, और शादी एक सामाजिक एकता का मेला बनती थी।

अब समय बदल गया है। रेडीमेड जमाना आ गया है। टेंट और वेटरों की प्रथा ने सब कुछ बदल दिया है। आज की शादियां सिर्फ तीन दिन का खेल बन गई हैं, जहां न कोई जिम्मेदारी का अहसास है न  सामाजिकता का भाव। याद आती है वो गांव की शादियां और त्योहार, जो दिल को छू जाते थे।

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