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कुमाऊँ में दीपावली पर ऐपण डालने की परम्परा। Tradition of applying Aipan on Diwali in Kumaon.

उत्तराखण्ड के कुमाऊँ अंचल में दीपावली के अवसर पर घरों में ऐपण डालने की लोक परम्परा है . ऐपण के लिए सबसे पहले चावलों को आवश्यकतानुसार भिगाया जाता है . उसके बाद उन्हें सिलबट्टे पर बारीक पीस लिया जाता है . पीसने के बाद उसका धार देने लाय़क गाढ़ा घोल तैयार किया जाता है . जिसे ” बिस्वार ” कहते हैं . बिस्वार को चम्मच की सहायता से दिवार के नीचले हिस्से में चार – पॉच इंच की ऊँचाई से लाइन में नीचे को गिराया जाता है . इस तरह तीन , पॉच या सात रेखाएँ एक साथ धार देकर बनाई जाती हैं , उन्हें ” धार ” डालना भी कहा जाता है । कुछ स्थानों में ” होर ” भी कहते हैं। पॉच , सात लाइनों की जो पूरी आकृति बनती है , जिन्हें ऐपण कहते हैं . ऐपण जमीन पर भी बननाए जाते हैं . जब से सीमेंट व मार्बल की सजावट से मकान बनाए जाने लगे हैं . तब से एेपण डालने की परम्परा तेजी के साथ संकट के द्वार पर जा खड़ी हुई है .

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कई लोग मारबल के मकानों में ब्रश व पेंट से ” ऐपण ” बनाते हैं । पर क्या वे वास्तव में ऐपण हैं ? जबकि वे ऐपण न होकर एक तरह की पेंटिंग ही हो गई । फर्क सिर्फ इतना है कि पेंटिंग किसी भी तरह की हो सकती है , जबकि ऐपण की पेंटिंग को परम्परागत तौर पर ही बनाना होता है । ऐसे में यह एक बड़ा सवाल है बिना बिस्वार की सहायता के बनाए जाने वाले को ऐपण की श्रेणी में कैसे रखा जा सकता है ? क्योंकि ऐपण बनाने पर होरे डालने में हाथ ही अंगुलियों की एक तरह की साधना देखने को मिलती है । दिवार में ऐपण के धार देना भी आसान काम नहीं होता । उसमें एक पूरी कलात्मकता देखने को मिलती है । ऐसा ही कुछ ऑगन व घर के पूजा स्थल में ” बिस्वार ” से बनाए जाने वाले ऐपणों में भी है । जमीन में जो विभिन्न ज्यामीतिय आकार व दूसरे अलंकरणों से सुसज्जित ऐपण बनाएँ जाते हैं , उनमें हाथ अंगुलियॉ के नियंत्रण और उनसे पैदा होने वाली कला पूरी तरह से सामने आती हैं । ये ऐपण पूरी तरह से बिस्वार में एक हाथ ही पॉचों अंगुलियों की डूबाकर उनके पोरों की सहायता से बनाई जाती हैं ।

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