🌿 प्रस्तावना : जब आस्था इतिहास से मिलती है भारत की भूमि संतों, मंदिरों और देवालयों की अनगिनत कहानियों से पटी हुई है। हर गांव, हर नगर में आस्था का एक दीपक प्रज्वलित होता है, जो अपने साथ इतिहास, संस्कृति और चमत्कार की गवाही देता है। अलीगढ़ जनपद की तहसील अतरौली के छोटे-से कस्बे बिजौली में स्थित पातालेश्वर महादेव मंदिर ऐसी ही एक आस्था की अद्वितीय धरोहर है।
दो वर्ष पूर्व कस्बे के ही श्रद्धालु पंडित बिजेंद्र पाल शर्मा ने भगवान पातालेश्वर महादेव की कठिन दंडवत परिक्रमा का संकल्प लेकर उसे पूर्ण किया था। और आज तक उनकी इस परिक्रमा की पुनरावृत्ति कोई नहीं कर पाया। लेकिन यह केवल व्यक्तिगत तपस्या की कथा नहीं है, बल्कि उस दिव्य मंदिर की भी कहानी है, जिसकी जड़ें 1175 वर्ष पूर्व तक जाती हैं और जिसके उद्गम में छिपा है एक ऐसा अद्भुत चमत्कार, जिसे सुनकर हर भक्त भावविभोर हो जाता है।
🌺 पातालेश्वर महादेव की उत्पत्ति : किसान की फावड़ी और दूध की धार
सन् 850 ईस्वी के आसपास का समय रहा होगा। बिजौली कस्बे के एक किसान ने अपनी ज़मीन समतल करने के लिए एक टीले को खोदना शुरू किया। अचानक उसकी फावड़ी एक कठोर पत्थर जैसी वस्तु से टकराई। पर यह कोई साधारण पत्थर नहीं था — यह स्वयंभू शिवलिंग था।
जैसे ही फावड़ा शिवलिंग से टकराया, वहां से दूध की धार बहने लगी। किसान अवाक रह गया। उसने आसपास के लोगों को बुलाया। देखते ही देखते पूरा गांव जमा हो गया। सवाल उठने लगा — “क्या एक पत्थर से दूध बह सकता है?”
लोगों ने जिज्ञासावश और खुदाई शुरू की। परंतु जितना खोदते, शिवलिंग उतना ही ऊपर उठता चला जाता। लोग हैरान थे — यह शिवलिंग कितना विशाल है? इसका अंत कहां है?
धीरे-धीरे यह समझ में आने लगा कि यह कोई साधारण शिवलिंग नहीं, बल्कि स्वयं भगवान पातालेश्वर महादेव का प्रतीक है। क्योंकि जितना खोदते जाओ, इसका पाताल (नीचे) का छोर ही नहीं मिलता।
यही से इसका नाम पड़ा — पातालेश्वर महादेव।
🕉️ आस्था का महासागर : जब गांव बना तीर्थस्थल
जैसे-जैसे शिवलिंग का चमत्कार दूर-दूर तक फैला, लोग आसपास के गांवों से उमड़ने लगे। भजन-कीर्तन, पूजा-अर्चना शुरू हो गई। हर कोई इस चमत्कार को अपनी आंखों से देखना चाहता था।
ग्रामीणों ने वहां पर स्थायी पूजा की व्यवस्था की। धीरे-धीरे यह स्थान एक छोटे मेले का रूप लेने लगा। समय बीता, पीढ़ियां बदलीं, लेकिन आस्था और श्रद्धा उसी तरह बढ़ती रही।
लोग मानने लगे कि —
“जो भी श्रद्धाभाव से पातालेश्वर महादेव की पूजा करता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है।”
🌸 विशेष मान्यता : संतान प्राप्ति का आशीर्वाद
ग्रामीण मान्यता के अनुसार, निःसंतान दंपत्ति पातालेश्वर महादेव के दरबार में आते हैं। मंदिर की चारदीवारी पर गाय के गोबर से स्वस्तिक (सतिया) बनाते हैं और भोलेनाथ से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मांगते हैं।
कई परिवारों ने अपनी संतान जन्म के बाद यहां विशेष पूजन कराया है। महिलाएं शिवलिंग का दुग्धाभिषेक करती हैं और पुत्र/पुत्री प्राप्ति की कथा पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाती रही हैं।
🌼 सावन और शिवरात्रि का मेला : आस्था का महासंगम
हर साल महाशिवरात्रि और सावन के महीने में यहां अपार भीड़ उमड़ती है। भक्तजन गंगाजल लेकर आते हैं और पातालेश्वर महादेव का जलाभिषेक करते हैं।
आसपास के सैकड़ों गांवों से लोग पैदल यात्रा कर मंदिर पहुंचते हैं। भजन-कीर्तन, रात्रि जागरण और झांकी दर्शन से पूरा कस्बा भक्तिमय हो उठता है।
🙏 पंडित बिजेंद्र पाल शर्मा का संकल्प : दंडवत परिक्रमा
दो वर्ष पूर्व कस्बे के श्रद्धालु पंडित बिजेंद्र पाल शर्मा ने एक अद्वितीय संकल्प लिया — पातालेश्वर महादेव की दंडवत परिक्रमा।
यह परिक्रमा साधारण नहीं थी। हर कदम पर दंडवत प्रणाम कर आगे बढ़ना, यह तपस्या किसी साधक के लिए भी कठिन कार्य है।
शर्मा जी ने इसे पूर्ण किया, और उनकी इस आस्था ने पूरे क्षेत्र को भक्ति और श्रद्धा का संदेश दिया।
आज तक किसी और ने यह कठिन परिक्रमा नहीं दोहराई।
⚡ आज की स्थिति : आस्था और विकास का संगम
मंदिर आज भी उतनी ही श्रद्धा से पूजित है जितना 1175 वर्ष पूर्व था। यहां लगातार विकास कार्य हुए हैं, लेकिन ग्रामीण आज भी उस चमत्कार को याद करते हैं जब शिवलिंग से दूध की धारा बही थी।
📜 निष्कर्ष : पातालेश्वर, आस्था का अटल प्रतीक
अलीगढ़ जनपद का यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह आस्था, चमत्कार और विश्वास का अद्वितीय संगम है।
पातालेश्वर महादेव का यह स्वरूप हमें यह सिखाता है कि —
👉 श्रद्धा में अपार शक्ति होती है।
👉 तपस्या और आस्था का मार्ग कठिन हो सकता है, परंतु उसका फल अनमोल होता है।
👉 भोलेनाथ का दरबार सबकी मनोकामनाएँ पूर्ण करता है।
✒️ अंतिम पंक्ति
“1175 वर्ष पूर्व शुरू हुई यह गाथा आज भी उसी श्रद्धा और आस्था के साथ जीवित है। पातालेश्वर महादेव केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की अमिट पहचान हैं।”