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क्या जम्बूद्वीप का ही अर्थ सनातन साम्राज्य है? Does Jambudweep mean the Eternal Empire?

इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है….
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत।
(वायु 31-37, 38)

महाभारत में कहा गया है कि –
यह पृथ्वी चन्द्रमंडल में देखने पर दो अंशों मे खरगोश तथा अन्य दो अंशों में पिप्पल (पत्तों) के रुप में दिखायी देती है-
उक्त मानचित्र ११वीं शताब्दी में रामानुजचार्य द्वारा महाभारत के निम्नलिखित श्लोक को पढ्ने के बाद बनाया गया था-

“सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन।
परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥
यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः।
एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥
द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।
“अर्थात हे कुरुनन्दन !

सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है,जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता है।

इसके दो अंशो मे पिप्पल और दो अंशो मे महान
शश(खरगोश) दिखायी देता है।”

अब यदि उपरोक्त संरचना को कागज पर बनाकर
व्यवस्थित करे तो हमारी पृथ्वी का मानचित्र बन
जाता है,जो हमारी पृथ्वी के वास्तविक मानचित्र
से शत प्रतिशत समानता दिखाता है।
ऋषि पाराशर के अनुसार ये पृथ्वी सात महाद्वीपों

में बंटी हुई है…

1.जम्बूद्वीप
2.प्लक्षद्वीप
3.शाल्मलद्वीप
4.कुशद्वीप
5.क्रौंचद्वीप
6.शाकद्वीप
7.पुष्करद्वीप

ये सातों द्वीप चारों ओर से क्रमशः खारे पानी,नाना प्रकार के द्रव्यों और मीठे जल के समुद्रों से घिरे हैं। ये सभी द्वीप एक के बाद एक दूसरे को घेरे हुए बने हैं,और इन्हें घेरे हुए सातों समुद्र हैं।

जम्बुद्वीप इन सब के मध्य में स्थित है।
इनमे से जम्बुद्वीप का सबसे विस्तृत वर्णन मिलता है। इसी में हमारा भारतवर्ष स्थित है। 
सभी द्वीपों के मध्य में जम्बुद्वीप स्थित है। इस द्वीप के मध्य में सुवर्णमय सुमेरु पर्वत स्थित है। इसकी ऊंचाई चौरासी हजार योजन है और नीचे कई ओर यह सोलह हजार योजन पृथ्वी के अन्दर घुसा हुआ है। इसका विस्तार,ऊपरी भाग में बत्तीस हजार योजन है,तथा नीचे तलहटी में केवल सोलह हजार योजन है। इस प्रकार यह पर्वत कमल रूपी पृथ्वी की कर्णिका के समान है। सुमेरु के दक्षिण में हिमवान, हेमकूट तथा निषध नामक वर्ष पर्वत हैं,जो भिन्न भिन्न वर्षों का भाग करते हैं। सुमेरु के उत्तर में नील,श्वेत और शृंगी वर्षपर्वत हैं। इनमें निषध और नील एक एक लाख योजन तक फ़ैले हुए हैं। हेमकूट और श्वेत पर्वत नब्बे नब्बे हजार योजन फ़ैले हुए हैं। हिमवान और शृंगी अस्सी अस्सी हजार योजन फ़ैले हुए हैं। मेरु पर्वत के दक्षिण में पहला वर्ष भारतवर्ष कहलाता है,दूसरा किम्पुरुषवर्ष तथा तीसरा हरिवर्ष है। इसके दक्षिण में रम्यकवर्ष, हिरण्यमयवर्ष और तीसरा उत्तरकुरुवर्ष है। उत्तरकुरुवर्ष द्वीपमण्डल की सीमा पार होने के कारण भारतवर्ष के समान धनुषाकार है। इन सबों का विस्तार नौ हजार योजन प्रतिवर्ष है। इन सब के मध्य में इलावृतवर्ष है,जो कि सुमेरु पर्वत के चारों ओर नौ हजार योजन फ़ैला हुआ है। एवं इसके चारों ओर चार पर्वत हैं,जो कि ईश्वरीकृत कीलियां हैं,जो कि सुमेरु को धारण करती हैं, ये सभी पर्वत इस प्रकार से हैं:-
पूर्व में मंदराचल
दक्षिण में गंधमादन
पश्चिम में विपुल
उत्तर में सुपार्श्व
ये सभी दस दस हजार योजन ऊंचे हैं। इन पर्वतों पर ध्वजाओं समान क्रमश: कदम्ब,जम्बु, पीपल और वट वृक्ष हैं। इनमें जम्बु वृक्ष सबसे बड़ा होने के कारण इस द्वीप का नाम जम्बुद्वीप पड़ा है। यहाँ से जम्बु नद नामक नदी बहती है। उसका जल का पान करने से बुढ़ापा अथवा इन्द्रियक्षय नहीं होता। उसके किनारे की मृत्तिका (मिट्टी) रस से मिल जाने के कारण सूखने पर जम्बुनद नामक सुवर्ण बनकर सिद्धपुरुषों का आभूषण बनती है।

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प्लक्षद्वीप का वर्णन –
प्लक्षद्वीप का विस्तार जम्बूद्वीप से दुगुना है। यहां बीच में एक विशाल प्लक्ष वृक्ष लगा हुआ है। यहां के स्वामि मेधातिथि के सात पुत्र हुए हैं। ये थे: शान्तहय,शिशिर,सुखोदय,आनंद,शिव,क्षेमक,ध्रुव । यहां इस द्वीप के भी भारतवर्ष की भांति ही सात पुत्रों में सात भाग बांटे गये,जो उन्हीं के नामों पर रखे गये थे: शान्तहयवर्ष, इत्यादि। इनकी मर्यादा निश्चित करने वाले सात पर्वत हैं: गोमेद,चंद्र,नारद,दुन्दुभि,सोमक,सुमना और वैभ्राज। इन वर्षों की सात ही समुद्रगामिनी नदियां हैं अनुतप्ता,शिखि,विपाशा,त्रिदिवा,अक्लमा,अमृता और सुकृता। इनके अलावा सहस्रों छोटे छोटे पर्वत और नदियां हैं।
इन लोगों में ना तो वृद्धि ना ही ह्रास होता है। सदा त्रेतायुग समान रहता है। यहां चार जातियां आर्यक,कुरुर,विदिश्य और
भावी क्रमशः ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र हैं। यहीं जम्बू वृक्ष के परिमाण वाला एक प्लक्ष (पाकड़) वृक्ष है। इसी के ऊपर इस द्वीप का नाम पड़ा है। प्लक्षद्वीप अपने ही परिमाण वाले इक्षुरस के सागर से घिरा हुआ है।

शाल्मल द्वीप का वर्णन इस द्वीप के स्वामि वीरवर वपुष्मान थे। इनके सात पुत्रों : श्वेत,हरित,जीमूत,रोहित,वैद्युत,मानस और सुप्रभ के नाम संज्ञानुसार ही इसके सात भागों के नाम हैं। इक्षुरस सागर अपने से दूने विस्तार वाले शाल्मल द्वीप से चारों ओर से घिरा हुआ है। यहां भी सात पर्वत,सात मुख्य नदियां और सात ही वर्ष हैं। इसमें महाद्वीप में कुमुद,उन्नत,बलाहक, द्रोणाचल,कंक,महिष,ककुद्मान नामक सात पर्वत हैं। इस महाद्वीप में – योनि,तोया,वितृष्णा,चंद्रा,विमुक्ता,विमोचनी एवं निवृत्ति नामक सात नदियां हैं। यहाँ – श्वेत,हरित,जीमूत,रोहित,वैद्युत,मानस और सुप्रभ नामक सात वर्ष हैं। यहां – कपिल,अरुण,पीत और कृष्ण नामक चार वर्ण हैं। यहां शाल्मल (सेमल) का अति विशाल वृक्ष है। यह महाद्वीप अपने से दुगुने विस्तार वाले सुरासमुद्र से चारों ओर से घिरा हुआ है। कुश द्वीप का वर्णन इस द्वीप के स्वामि वीरवर ज्योतिष्मान थे।

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इनके सात पुत्रों : उद्भिद,वेणुमान,वैरथ,लम्बन,धृति,प्रभाकर,कपिल। इनके नाम संज्ञानुसार ही इसके सात भागों के नाम हैं। मदिरा सागर अपने से दूने विस्तार वाले कुश द्वीप से चारों ओर से घिरा हुआ है। यहां भी सात पर्वत,सात मुख्य नदियां और सात ही वर्ष हैं।

पर्वत – विद्रुम,हेमशौल,द्युतिमान,पुष्पवान,कुशेशय,हरि और मन्दराचल नामक सात पर्वत हैं।

नदियां – धूतपापा,शिवा,पवित्रा,सम्मति,

विद्युत,अम्भा और मही नामक सात नदियां हैं।

सात वर्ष – उद्भिद,वेणुमान,वैरथ,लम्बन,धृति

प्रभाकर,कपिल नामक सात वर्ष हैं।

वर्ण – दमी,शुष्मी,स्नेह और मन्देह नामक चार वर्ण हैं।

यहां कुश का अति विशाल वृक्ष है। यह महाद्वीप अपने ही बराबर के द्रव्य से भरे समुद्र से चारों ओर से घिरा हुआ है।
क्रौंच द्वीप का वर्णन –
इस द्वीप के स्वामि वीरवर द्युतिमान थे।

इनके सात पुत्रों :
कुशल,मन्दग,उष्ण,पीवर,अन्धकारक,मुनि और दुन्दुभि के नाम संज्ञानुसार ही इसके सात भागों के नाम हैं।
यहां भी सात पर्वत,सात मुख्य नदियां और सात ही वर्ष हैं।

पर्वत – क्रौंच,वामन,अन्धकारक,घोड़ी के
मुख समान रत्नमय स्वाहिनी पर्वत,दिवावृत, पुण्डरीकवान, महापर्वत दुन्दुभि नामक सात पर्वत हैं।
नदियां – गौरी,कुमुद्वती,सन्ध्या,रात्रि,मनिजवा,क्षांति और पुण्डरीका नामक सात नदियां हैं।
सात वर्ष – कुशल,मन्दग,उष्ण,पीवर,
अन्धकारक,मुनि और दुन्दुभि ।
वर्ण – पुष्कर,पुष्कल,धन्य और तिष्य नामक चार वर्ण हैं।
यह द्वीप अपने ही बराबर के द्रव्य से भरे समुद्र से चारों ओर से घिरा हुआ है।
यह सागर अपने से दुगुने विस्तार वाले शाक द्वीप से घिरा है।

शाकद्वीप का वर्णन –
इस द्वीप के स्वामि भव्य वीरवर थे।
इनके सात पुत्रों :
जलद,कुमार,सुकुमार,मरीचक,कुसुमोद,मौदाकि और महाद्रुम के नाम संज्ञानुसार ही इसके सात भागों के नाम हैं।
यहां भी सात पर्वत,सात मुख्य नदियां और सात ही वर्ष हैं।
पर्वत – उदयाचल,जलाधार,रैवतक,श्या, अस्ताचल,आम्बिकेय और अतिसुरम्य गिरिराज केसरी नामक सात पर्वत हैं।
नदियां – सुमुमरी,कुमारी,नलिनी,धेनुका,इक्षु,वेणुका और गभस्ती नामक सात नदियां हैं।
सात वर्ष – जलद,कुमार,सुकुमार,मरीचक,
कुसुमोद,मौदाकि और महाद्रुम ।
वर्ण – वंग,मागध,मानस और मंगद नामक चार वर्ण हैं।

यहां अति महान शाक वृक्ष है,जिसके वायु के स्पर्श करने से हृदय में परम आह्लाद उत्पन्न होता है।
यह द्वीप अपने ही बराबर के द्रव्य से भरे समुद्र से चारों ओर से घिरा हुआ है। यह सागर अपने से दुगुने विस्तार वाले पुष्कर द्वीप से घिरा है।

पुष्करद्वीप का वर्णन –
इस द्वीप के स्वामि सवन थे।
इनके दो पुत्र थे: महावीर और धातकि। यहां एक ही पर्वत और दो ही वर्ष हैं।
पर्वत –
मानसोत्तर नामक एक ही वर्ष पर्वत है।
यह वर्ष के मध्य में स्थित है ।
यह पचास हजार योजन ऊंचा और इतना ही सब ओर से गोलाकार फ़ैला हुआ है।
इससे दोनों वर्ष विभक्त होते हैं,और वलयाकार ही रहते हैं।
नदियां –
यहां कोई नदियां या छोटे पर्वत नहीं हैं।
वर्ष – महवीर खण्ड और धातकि खण्ड।
महावीरखण्ड वर्ष पर्वत के बाहर की ओर है,और बीच में धातकिवर्ष है ।
वर्ण – वंग,मागध,मानस और मंगद नामक चार वर्ण हैं।
यहां अति महान न्यग्रोध (वट) वृक्ष है,जो ब्रह्मा जी का निवासस्थान है यह द्वीप अपने ही बराबर के मीठे पानी से भरे समुद्र से चारों ओर से घिरा हुआ है।
समुद्रो का वर्णन –
यह सभी सागर सदा समान जल राशि से भरे रहते हैं, इनमें कभी कम या अधिक नही होता।
हां चंद्रमा की कलाओं के साथ साथ जल बढ़्ता या घटता है।
(ज्वार-भाटा) यह जल वृद्धि और क्षय 510 अंगुल तक देखे गये हैं।
पुष्कर द्वीप को घेरे मीठे जल के सागर के पार उससे दूनी सुवर्णमयी भूमि दिखलाई देती है।
वहां दस सहस्र योजन वाले लोक-आलोक पर्वत हैं।
यह पर्वत ऊंचाई में भी उतने ही सहस्र योजन है।
उसके आगे पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए घोर अन्धकार छाया हुआ है।
यह अन्धकार चारों ओर से ब्रह्माण्ड कटाह से आवृत्त है।
(अन्तरिक्ष) अण्ड-कटाह सहित सभी द्वीपों को मिलाकर समस्त भू-मण्डल का परिमाण पचास
करोड़ योजन है। (सम्पूर्ण व्यास)
आधुनिक नामों की दृष्टी से विष्णु पुराण का सन्दर्भ देंखे तो…
हमें कई समानताएं सिर्फ विश्व का नक्शा देखने भर से मिल जायेंगी…
१. विष्णु पुराण में पारसीक – ईरान को कहा
गया है।
२. गांधार वर्तमान अफगानिस्तान था।
३. महामेरु की सीमा चीन तथा रशिया को घेरे है।
४. निषध को आज अलास्का कहा जाता है।
५. प्लाक्ष्द्वीप को आज यूरोप के नाम से जाना जाता है।
६. हरिवर्ष की सीमा आज के जापान को घेरे थी।
७. उत्तरा कुरव की स्तिथि को देंखे तो ये फ़िनलैंड प्रतीत होता है ।
इसी प्रकार विष्णु पुराण को पढ़कर विश्व का एक सनातनी मानचित्र तैयार किया जा सकता है…
ये थी हमारे ऋषियों की महानता !!
जयति पुण्य सनातन संस्कृति।
जयति पुण्य भूमि भारत……

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