
गाँवों में आज भी लोग कैसे अलग तरह से सोचते हैं, इसका एक उदाहरण एक कारीगर से कुछ पहाड़ी रिंगाल की टोकरियाँ बनवायीं थीं। छोटा सा ऑर्डर था, जिसने बनाई वो पहले तो उत्तरकाशी से अपने आप वो सब देने देहरादून आए और साथ में पहाड़ी कखड़ी और एक लकड़ी का मोबाइल स्टैंड भी अपने आप ले कर आये।
वैसे गाँव आज भी ट्रेड नहीं करता, रिश्ते ही बनाता है!