दीपावली का त्योहार मनाने दूर दूर से हम अपने घर आते हैं। इस त्योहार का भी अपना है एक आकर्षण और खुशी होती है हर कोई हर कोई चाहता है कि वह दीपावली अपने परिवार के साथ खुशियों एवं उल्लास के साथ मनाएं लेकिन मेरे साथ ठीक उल्टा था घर वालों का बहुत लंबा चौड़ा भाषण और कुछ खट्टी मीठी गालियां सुनने के बाद भी मैं दीपावली के दिन निकल पड़ा हिमालय की उस खूबसूरत घाटी और चोटी की यात्रा में। जो बहुत पहले से मेरी बकेट लिट में थी। दीपावली एक ऐसा समय था जिसमें कुछ दिनों की छुट्टियां थी और इसका सटीक सदुपयोग हो सकता था और ट्रैवलर के लिए इससे बढ़िया क्या हो सकता है। जॉब के साथ ट्रेवल के लिए छुट्टियां बहुत कम होती हैं। कभी-कभी तो मन में ऐसा ख्याल आता है कि जॉब छोड़कर दुनिया घूमने निकल लूं। बैकपैक किया और देहरादून से सीधे पहुंच गया चकोरी दूसरे दिन चकोरी से धारचूला ओर यहीं से शुरू होनी थी हिमालय की खूबसूरत घाटी दारमा घाटी ओर पंचचुली की यात्रा। धारचूला पहुंचते -पहुंचते लगभग शाम हो चुकी थी मैंने कुमाऊँ मंडल विकास निगम के मानस गेस्ट हाउस में कमरा लिया और कमरा तीसरी मंजिल पर था ओर कमरे से काली नदी का बिहंगम दृश्य एवं खिड़की के ठीक सामने नेपाल था। चाय पीने के उपरांत में पुल पार करके सीधे नेपाल के दारचूला पहुंच गया। धारचूला अब नेपाल में दारचूला हो गया था। नेपाल के बहुत सारे लोग रोजमर्रा की जरूरत का सामान भी भारत के धारचूला बाजार से लेकर जा रहे थे। पुल के इस तरफ भारतीय सेना के कुछ जवान और पुल के उसे तरफ नेपाल सेना की कुछ जवान आने जाने वाले लोगों की आईडी प्रूफ देख रहे थे। मैं जोशखरोश और तेजी के साथ में नेपाल की सीमा में गया था कुछ उम्मीदें और कुछ आशायें लेकर लेकिन बहुत ही जल्दी जिस तेजी के साथ में गया था उसी तेजी के साथ वापस आ गया क्योंकि वहां देखने के लिए कुछ चंद दुकानें और संकरी गलियों के सिवाय कुछ भी नहीं था। दूसरे दिन सुबह नाश्ता इत्यादि करने के पश्चात 9:00 बजे में निकल पड़ा अपनी ड्रीम डेस्टिनेशन दारमा वैली की ओर। रास्ते में जगह-जगह सड़क निर्माण का कार्य चल रहा था और तवा घाट से आगे तो जो सड़क थी ऑफ़रोडिंग एवं एडवेंचर से भरपूर थी। सड़क के दोनों तरफ ऊंचे ऊंचे पहाड़ और खड़ी चट्टानों से गुजरती हुई सड़कें नीचे दारमा नदी एवं जगह-जगह सड़क पर बहते हुए झरनों जब पानी जब गाड़ी की विंडस्क्रीन पर पड़ता तो एडवेंचर का मज़ा दुगना हो जाता।
दारमा घाटी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित एक खूबसूरत और सुरम्य घाटी है। यह घाटी हिमालय पर्वत की श्रृंखलाओं के बीच बसी हुई है और इसकी ऊंचाई करीब 3,000 मीटर तक है। दारमा घाटी अपने प्राकृतिक सौंदर्य, शांत वातावरण और रोमांचक ट्रेकिंग,एवं ऑफ़रोडिंग के लिए जानी जाती है।
इस घाटी के माध्यम से बहने वाली दारमा नदी, (धौली नदी)जो काली नदी की सहायक है, इस घाटी की सुंदरता को और भी बढ़ा देती है। चारों ओर ऊँचे-ऊँचे पर्वत, हरे-भरे जंगल, और दुर्लभ वनस्पतियों से भरी यह घाटी विभिन्न जड़ी-बूटियों का खजाना भी मानी जाती है।
दारमा घाटी का मुख्य आकर्षण नंदा देवी और पंचाचूली चोटियों का अद्भुत अलौकिक दृश्य है। यह घाटी नेपाल और तिब्बत की सीमा से लगती है और यहां पर बसे हुए ग्रामीण लोग स्थानीय संस्कृतियों और परंपराओं का पालन करते हैं। यह घाटी दारमा, व्यास, और चौंदास घाटियों का हिस्सा है।
दारमा घाटी की इन उबड़-खाबड़ सड़कों से होते हुए अब मैं दुगतु गांव पहुंच चुका हूं। दुगतु गाँव से पंचाचूली पर्वत श्रृंखला का व्यू नहीं है इसलिये मैंने दांतु गांव में रात्रि विश्राम का निर्णय लिया दांतु गांव से पंचाचूली का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है, जो मेरे लिए लिए एक बड़ा आकर्षण है। मैं सड़क से कुछ दूरी पर गांव में होम स्टे ढूंढने के लिए निकल पड़ा गांव में पहुंचकर पता चला की अधिकांश गांव वाले अब अपने 6 माह के दूसरे घरों में निकल चुके हैं गांव ज्यादातर खाली हो चुका था सभी होमस्टे स्वामी भी गांव से जा चुके थे अब मुझे बड़ा मायूस होना पड़ा क्योंकि गांव में रुकने से वहां के रीति रिवाज खान-पान वहां लोगों से बात करने का मौका मिल जाता है लेकिन अब यह सब मुझे नहीं मिलने वाला था मजबूरी में मुझे अब वापस आना पड़ा दांतु गांव में ही सड़क के किनारे कुछ स्थानीय लोगों ने ही रिजॉर्ट बना रखे हैं मुझे भी फाइनली एक रिसॉर्ट पसंद आया जो बिल्कुल पंचाचुली के सामने था जहां से पंचाचूली का बहुत शानदार दृश्य दिखाई दे रहा था । सूर्यास्त होने में अभी काफी समय बाकी था इसलिए मैं निकल पड़ा दुगतु गांव की सैर पर । यह गाँव भोटिया जनजाति का निवास स्थान है, जो अपनी सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं को सहेज कर रखते हैं। दुगतु के लोग पारंपरिक जीवनशैली का पालन करते हैं और यहाँ की मुख्य आजीविका पशुपालन, ऊनी वस्त्र बनाना और कृषि है। गाँव के लोग साल के कुछ महीनों में यहाँ रहते हैं, और ठंड के मौसम में नीचे के इलाकों की ओर प्रवास कर जाते हैं। अब दांतु गांव के अधिकांश लोग भी यहां से पलायन कर चुके थे। 6 माह बाद घर से पलायन करना भी एक बहुत बड़ी चुनौती है बच्चों का स्कूल घर का सामान पशु अनाज खेती बाड़ी एवं कई सामान पशुओं पर लादकर और पैदल मार्ग से कई किलोमीटर चलकर फिर 6 माह के दूसरे घरों में जाना इन सीमावर्ती गाँवो के लिए कितनी चुनोतियाँ का सामना करना पड़ता होगा। अब धीरे धीरे सूर्यास्त के समय करीब आ रहा था तो मैं सूर्यास्त देखने अपने रेसोर्ट में चला गया।
पंचाचूली चोटियों पर सूर्यास्त के दृश्य अद्वितीय और बेहद मंत्रमुग्ध करने वाला है। अब सूर्य धीरे-धीरे पहाड़ों के पीछे ढलने लग रहा है, आकाश में सुनहरी और नारंगी रंग की आभा फैल रही है। सूर्य की किरणें पंचाचूली के हिमाच्छादित शिखरों पर पड़कर उन्हें एक सुनहरी आभा से सजा रही हैं, जिससे ये शिखर जैसे खुद में एक अलग ऊर्जा और आकर्षण बिखेरते हैं। इस क्षण ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो हिमालय स्वयं रंग-बिरंगे आभूषणों से सजे हुए हैं। सूरज की अंतिम किरणों का प्रतिबिंब घाटी में बहती दारमा नदी और आस-पास के जंगलों पर पड़ता है, जो उन्हें एक शांत और दिव्य चमक से भर देता है। आसमान में पक्षियों की उड़ानें, हल्की ठंडी हवा, और प्रकृति की यह रंग-बिरंगी छटा आपके दिलोदिमाग को रोमांचित कर देती है। इस दृश्य के साथ ही मन में एक अद्भुत शांति और एकाग्रता का अनुभव होता है, जो आत्मा को हिमालय की दिव्यता का अहसास कराती है।
सूर्य ढलने के साथ ही पहाड़ों में तापमान में भी तेजी से गिरावट हो जाती है अगले दिन सुबह में 5:30 बजे उठ गया ताकि मैं पंचाचुली पर सूर्योदय देख सकूं सूर्योदय ठीक 6:18 पर हुआ । दांतु गांव से सूर्योदय का जो नजारा था वह विस्मयकारी था ऐसा था कि पंचाचूली की हिमधवल चोटिया स्वर्ण से दिव्य स्नान कर रही हों।इन्हीं दृश्यों को देखने के लिये ही था मैं इस गांव में रुका था ताकि सूर्यास्त और सूर्योदय देख सकूं और यह दोनों मैंने देख लिए थे अब मैं अपने बैग में कुछ ब्रेकफास्ट पैक कर 8:00 बजे पंचाचुली ट्रैक के लिए निकल पड़ा गांव से आधा किलोमीटर की दूरी पर जाने के पश्चात एकदम घना जंगल है यदि आप अकेले ट्रैवल करते हैं तो एक डर का भी एहसास होता है कि कहीं से भी कोई जंगली जानवर ना आ जाए इसलिए जब आप भी कभी भी इस रास्ते पर ट्रैवल करें तो किसी दोस्त या किसी गाइड को साथ जरूर ले लें जंगल के बाद पूरे रास्ते से पंचाचुली चोटियों के दर्शन होते रहते हैं और ऐसा लगता है कि बिल्कुल हम करीब से बिल्कुल करीब जा रहे हैं 3 किलोमीटर आगे चलने के पश्चात एक जगह पर इगलू बनाई गई है जिनको कुमाऊँ मंडल विकास निगम के द्वारा बनाया गया था लेकिन अभी बंद की कगार पर है हो सकता है कि वन्य जीवन पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव के कारण इनका बंद करना पड़ा। थोड़ी दूर आगे बढ़ने के पश्चात भोजपत्र का घना जंगल मिलता है रास्ते में रंग बिरंगी वनस्पतियां एवं विशालकाय पंचाचुली की चोटियां एक नई ऊर्जा से भर देती हैं। 4 किलोमीटर चलने के पश्चात अब जंगल पीछे छूट चुके हैं और अब रास्ते में सिर्फ बुग्याल ही बुग्याल है जुलाई अगस्त में इन बुग्यालों की सुंदरता कई गुना बढ़ जाती है आजकल तो ये बुग्गयाल धीरे-धीरे पीले से काले होने शुरू हो गए हैं लेकिन यदि आप मानसून में और पोस्ट मानसून में यहां आए तो बुग्यालों की सुंदरता आपको सम्मोहित कर देगी जगह-जगह पानी की छोटी-छोटी जलधाराएं भी हैं जिम आप अपनी पानी की बोतल को भर सके प्यास बुझा सकते हैं बुग्यालों पर चलते-चलते अब मैं पंचाचुली के जीरो पॉइंट पर पहुंच चुका हूं। समुद्र तल से 4260 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मनमोहक पंचाचूली बेस कैंप का जीरो पॉइंट है, जहां पृष्ठभूमि में पंचाचूली की पांच चोटियां भव्य रूप से उभरी हुई हैं। पांच चोटियों में से पंचचूली द्वितीयसबसे ऊंची है, जिसकी ऊंचाई 6,904 मीटर है। पंचचूली प्रथम की ऊंचाई 6,355 मीटर, त्रितीय की ऊंचाई 6,312 मीटर, चतुर्थ की ऊंचाई 6,334 मीटर और पांचवीं की ऊंचाई 6,437 मीटर है।
पंचाचूली की पांच चोटियां हिमालय का मुकुट कही जाती है।पंचाचूली का नाम ‘पांच चूल्हे’ से लिया गया है, जो महाभारत के पाँच पांडवों के उस अंतिम रसोई का प्रतीक माना जाता है जहाँ उन्होंने स्वर्गारोहण के मार्ग पर प्रस्थान करने से पहले खाना बनाया था। इन चोटियों की बर्फ से ढकी चोटियाँ सूरज की किरणों के साथ सुनहरी चमक बिखेरती हैं, जो यात्रियों और पर्वतारोहियों के लिए एक अद्वितीय दृश्य प्रस्तुत करती हैं।
पंचाचूली चोटियों की बर्फीली चट्टानें और बर्फ की मोटी परतें सूर्योदय और सूर्यास्त के समय एक विशेष आकर्षण का केंद्र बनती हैं। सूरज की हल्की गुलाबी, सुनहरी किरणें जब इन चोटियों पर पड़ती हैं तो ऐसा लगता है जैसे ये चोटियाँ किसी दिव्य आभा में चमक रही हों। यह दृश्य अत्यंत शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक होता है, जो के मन को असीम शांति और सुकून प्रदान करता है। जीरो पॉइन्ट पर पर्याप्त समय बिताने जो अनुभव हुआ जो जीवन पर्यन्त न भूलने वाला रहा । अब मैंने पंचाचूली से दुगतू गाँव वापसी की यात्रा शुरू कर दी है वापसी की यात्रा भी बेहद रोमांचक और सुंदर अनुभव प्रदान करती है।वापसी के मार्ग में, ऊँचे-नीचे रास्तों से गुजरते हुए चारों ओर हिमालय की विशाल चोटियों का दृश्य आपके साथ बना रहता है। रास्ते के दोनों ओर चीड़, देवदार और बुरांश के घने जंगल अपनी हरियाली और सुगंध से वातावरण को ताजगी से भर देते हैं। रास्ते में बहती नदियाँ और छोटे-छोटे झरने इस यात्रा को और भी सजीव और मनमोहक बना देते हैं। जब ठंडी हवाएँ आपके चेहरे को छूती हैं और पक्षियों की मधुर चहचहाहट सुनाई देती है, तो मन पूरी तरह से इस प्राकृतिक वातावरण में खो जाता है।
जैसे-जैसे दुगतू गाँव के पास पहुँचते हैं, स्थानीय लोगों के छोटे घर, खेत और पशुपालन की झलक दिखाई देने लगती है। ग्रामीण जीवन की सादगी और यहाँ के निवासियों की आत्मीयता दिल को छू जाती है। गाँव के लोग बेहद मिलनसार और अतिथि सत्कार में विश्वास करने वाले होते हैं। अधिकतर गाँववाले अब अपने 6 माह के घरों में प्रस्थान कर चुके हैं। गांववालों की जीवनशैली, उनके पारंपरिक कपड़े और स्थानीय बोली एक अनोखा सांस्कृतिक अनुभव प्रदान करते हैं।
दुगतू गाँव और दांतु गाँवो में रात गुजारने का अनुभव भी विशेष होता है। आसमान में चमकते तारे, सर्द हवा, और पहाड़ों की खामोशी एक आध्यात्मिक शांति का अनुभव कराती है। गाँव का सरल वातावरण और स्थानीय भोजन जैसे कि आलू की सब्जी, मंडुआ की रोटी, और ताज़ी दाल एक अलग ही स्वाद और सुख का अहसास कराते हैं।
पंचाचूली से दुगतू की यह यात्रा न केवल प्राकृतिक सुंदरता से भरी होती है, बल्कि इसमें कुमाऊँ की संस्कृति, स्थानीय जनजीवन और हिमालय की पवित्रता का स्पर्श भी मिलता है, जो आपके के दिलों में हमेशा के लिए बसा रहता है।
पंचाचूली ट्रेक का समापन: इस अद्भुत यात्रा में हमने हिमालय की गोद में बसे अनछुए प्राकृतिक नज़ारों, घने जंगलों, बर्फ से ढके पहाड़ों, और अद्वितीय जैव विविधता को नजदीक से देखा। ट्रेक की हर एक चढ़ाई, हर मोड़ पर खुलते नज़ारे, और रास्ते में मिले स्थानीय लोगों की गर्मजोशी ने इस अनुभव को अविस्मरणीय बना दिया। हम यहां से न सिर्फ सुंदर यादें, बल्कि आत्मा में एक गहरी शांति और प्रकृति के प्रति एक नई दृष्टि लेकर लौट रहे हैं।
यात्रा का अच्छा समय – मई जून और पोस्ट मानसून एवं सितंबर।