Home » Culture » पत्तों से बनी पतरी(पत्तल )और मिट्टी से बने भुरका (कुल्हड़) में विवाह इत्यादि सभी कार्यक्रम में अतिथियों को भोजन खिलाया जाता था।

पत्तों से बनी पतरी(पत्तल )और मिट्टी से बने भुरका (कुल्हड़) में विवाह इत्यादि सभी कार्यक्रम में अतिथियों को भोजन खिलाया जाता था।

पत्तल और कुल्हड़!

पत्तों से बनी पतरी(पत्तल )और मिट्टी से बने भुरका (कुल्हड़) में विवाह इत्यादि सभी कार्यक्रम में अतिथियों को भोजन खिलाया जाता था। सूर्य देवता के पश्चिम मुंह होते ही गांव के सभी लड़के काम में जुट जाते थे। सारे गांव में घूम घूम कर खटिया, तख्त, बिस्तर, बर्तन एकत्र किए जाते थे। युवतियां सजना संवरना शुरू कर देती थी। बड़े बुजुर्ग सारे काम निपटा कर कार्यक्रम वाले घर पहुंच जाते थे। कोई गूला (भट्टी)खोदता था, कोई चैला(लकड़ी) फाड़ता था, कोई आलू धो रहा, कोई प्याज लहसुन छील रहा। महिलाएं कुटनी में सभी मसाले कूट कर तैयार कर देती थी, गलका बना देती थी। गूले की पूजा करके बड़े बड़े बर्तन चढ़ जाते थे, आलू उबलने लगता था, इधर लड़के झाडू लगाकर, पानी छिड़क कर खटिया, तख्त बिछा कर उपर से दरी, चादर बिछा देते थे।

उधर शामियाना, कनात लगने लगी इधर बड़े बुजुर्गों को आलू छीलने पर लगा दिया, परवल तला जाने लगा। गांव की सारी लड़कियां, तनिक प्रौढ़ बहुएं सज धज कर चौका बेलन लेकर पूड़ी बेलने आ जाती हैं। एक तरफ जाजिम बिछ जाता है जहां पर सभी महिलाएं पूड़ी बेलने बैठ जाती हैं और एक तरफ तख्त धोकर रख दिया जाता है।

यह भी पढ़िये :-  काश कि इन गाड़ियों की छतों में हल्द्वानी से सेब और आम की पेटियां भी इसी तरह वापस आती तो कितना अच्छा होता

नाउन काकी आटा गाेंज गोंज कर (गूंथ कर)देती जाती हैं और लड़के तख्त के चारों तरफ खड़े होकर आटा अच्छी तरह से गूंथ कर लड़कियों की तरफ छोटे बच्चों के हाथ थाली में रखकर पहुंचाते रहते थे। लडकियां गीत गाती, हंसती, मसखरी करती पूड़ी बेलती जाती। कड़ाही गूले पर चढ़ाए पंडित जी बैठे हैं पूडियां तल रहे हैं और साथ में चिल्लाते जाते हैं अरे! बिटिया हंसो कम हाथ ज्यादा चलाओ, पूड़ी कम पड़ रही है कड़ाह जल रहा है और तनिक पतली बेलो!

लड़कियां भी कम नहीं थी आगे से ज़बाब देती कि _काका! ये आटा बहुत कड़ा है बेला ही नहीं रहा है और फिर आटा लेकर आए बच्चे के हाथ ही आटा वापस लौटा देती थी कि बोलो फिर से गूंथे और नर्म करें। जैसे कुछ घान पूड़ी निकलती थी तभी बोरा, टाट पट्टी बिछा कर पंगत भोजन करने के लिए बैठा दी जाती थी।

यह भी पढ़िये :-  क्या आपने भी देखी पनचक्की? Did you also see the watermill?

आटा गूथ कर खाली हुए कुछ लड़के हाथ में बाल्टी और बाल्टी में सब्ज़ी लेकर, कोई परात में पूड़ी लेकर, कोई पानी लेकर पंगत को भोजन परोसने लगता। पत्तल में पूड़ी, आलू परवल की रसेदार तरकारी परोसी जाती थी और कुल्हड़ में पीने का पानी दिया जाता था। पगंत का नियम था कि जब तक सब भोजन न कर लें कोई उठता नहीं था। जब सब भोजन कर लेते थे तब सारी पंगत एक साथ भोजन करके उठती थी। पंगत के उठने के बाद नाउ काका झाडू लगाते पानी छिड़कते और फिर से टाट पट्टी झाड़ कर बिछाई जाती फिर नई पंगत भोजन करने बैठती थी। सारे पत्तल, कुल्हड़ फेंके जाते जिसमें बचा हुआ भोजन गांव के कुत्ते, कौवे करते थे और फिर गड्ढा खोद कर मिट्टी के नीचे दबा दिया जाता था जो कुछ दिनों में सड़कर खाद में परिवर्तित हो जाता था।

यह भी पढ़िये :-  उत्तराखंड की बेटी गीता ने पीरुल से पहाड़ की महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने की मुहीम शुरू की है।

Related posts:

1932 मे बद्रीनाथ, वहाँ के रावल और बद्रीनाथ में रस्सी से बने पुल की तस्वीर। Photo of Badrinath in 193...

Culture

सप्तपर्णी के फूलों की गंध जो आधी रात में वातावरण को महका देती है।

Culture

ये वीरान पड़े खुबसूरत घर इस बात के गवाह हैं कि पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी वाकई में पहाड़ों के ब...

Culture

नौकरी छोड़कर क्या सही फैसला लिया मैंने उत्तराखंड में छोटा सा रोजगार करने का बताएं - लक्ष्मण रावत।

Culture

बिरुड़ पंचमी की शुभकामनाएं। कुमाऊं में सातू-आठू यानि गौरा पर्व मनाया जाता है।

Festival

उत्तराखंड की शादीयों में "अरसे" बनाने की रस्म जरूरी है।

Culture

हिमालय के उत्तराखंड में नैनीताल झील के मनोरम दृश्य (1890 के दशक)। Panoramic view of Nainital Lake i...

Culture

कोदे की रोटी और पिस्यूं लूण (चटनी)। 

Culture

पौडी गढ़वाल रिखणीखाल रथुवाढाबा - तिलक बहादुर चाय ''चाहा'' वाले।

Culture

About

नमस्कार दोस्तों ! 🙏 में अजय गौड़ 🙋 (ऐड्मिन मेरुमुलुक.कॉम) आपका हार्दिक स्वागत 🙏 करता हूँ हमारे इस अनलाइन पहाड़ी 🗻पोर्टल💻पर। इस वेब पोर्टल को बनाने का मुख्य उद्देश्य 🧏🏼‍♀️ अपने गढ़ समाज को एक साथ जोड़ना 🫶🏽 तथा सभी गढ़ वासियों चाहे वह उत्तराखंड 🏔 मे रह रहा हो या परदेस 🌉 मे रह रहा हो सभी के विचारों और प्रश्नों/उत्तरों 🌀को एक दूसरे तक पहुचना 📶 और अपने गढ़वाली और कुमाऊनी संस्कृति 🕉 को बढ़ाना है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*
*