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गोबर-गणेश की पूजा कैसे की जाती है क्या है इसकी विधि?

gobar ganesh ki pooja
समुद्र मंथन में अद्भुत शक्तियों वाली पांच प्रकार की गाएं निकलीं- नंदा, सुभद्रा, सुरभि,सुशीला और बहुला। इन गायों को कामधेनु कहा गया। मंथन से निकले विष को महादेव ने पीकर देवों और असुरों दोनों को संकट से बचाया था। इसलिए महादेव को प्रसन्न करने के लिए देवों और असुरों ने सहमति से शिवजी को कामधेनु गायों का अधिकार सौंपा जिसे महादेव ने ऋषियों को दान कर दी। महर्षि जमदग्नि को नंदा, भरद्वाज को सुभद्रा, वशिष्ठ को सुरभि, असित को सुशीला और गौतम ऋषि को बहुला गाय मिलीं।  इन ऋषियों ने अपने आश्रम में गायों का चमत्कार देखा तो विस्मित रह गए। परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि ने तो नंदा को अपनी माता का दर्जा दिया। देवों को विस्मय हुआ।  उन्होंने ऋषि से कहा कि अगर यह आपकी माताहैं तो समस्त देवों को अपने गोद में स्थान देकर दिखाएं.नंदा ने अपने पूरे शरीर में सभी देवों को समाहित कर लिया. देवताओं ने तत्क्षण उन्हें अपनी माता मान लिया. उनके शरीर में स्थान मांगा और गुणगान करने लगे। लक्ष्मीजी तक बात पहुंची औऱ उन्होंने भी नंदा से अपने लायक स्थान मांगा। नंदा ने कहा- एक ऐसा कोई स्थान नहीं बचा जहां हे भगवती मैं आपको प्रतिष्ठित कर सकूं। सभी देवों ने कोई न कोई स्थान ग्रहण कर लिया है। अब मात्र गोबर ही शेष है किंतु आपको मैं वहाँ कैसे स्थान दूं ? लक्ष्मीजी उनकी सरलता पर खुश हो गईं. उन्होंने गाय के गोबर को ही अपना अंश स्वीकार किया।  इसीलिए पूजा में सबसे पहले गाय की बछिया के बने गोबर-गणेश की पूजा होती है। गाय के गोबर को ऐश्वर्यदायक माना जाता है।

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