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निराशवादियों को इस टमाटर के पौधे से कुछ सीख लेनी चाहिए।

तस्वीर में आप एक टमाटर के पौधे को देख रहे होंगे, शायद किसी यात्री ने टमाटर खाकर उसके बीज को ट्रेन से फेंक दिया होगा।  ये पौधा मिट्टी की छाती फाड़कर नही बल्कि पत्थरों को चीरकर बाहर आया है।

जब ये और भी नन्हा सा होगा, तब शताब्दी ओर राजधानी जैसे तूफान से भी तेज दौड़ती ट्रेनों के बिल्कुल पास से गुजरते हुए भी इसने सिर्फ बढ़ना सीखा ओर बढ़ते बढ़ते आखिर कार इसने एक टमाटर को जन्म दे ही दिया।

न हाथ है, न पांव है, न ही दिमाग है, और तो और इसको जीवित रहने के लिए कम से कम मिट्टी और पानी तो मिलना चाहिए ही था, जो इसका हक भी था लेकिन इस पौधे ने बिना

यह भी पढ़िये :-  तांबे के ये कारीगर बागेश्वर तहसील के अन्तर्गत मल्ली व तल्ली खरे के बीस गाँवों में परम्परागत तांबे के बर्तन बनाते हैं।

जल, बिना मिट्टी के, बिना सुविधा के अपने आपको बड़ा किया।  फला फूला और जीवन का उद्देश्य इसने पूरा किया।
जिन लोगो को लगता है कि जीवन मे हम तो असफल हो गए हम तो जीवन मे कुछ कर ही नही सकते, हम तो बस अब बरबाद हो ही चुके है, तो उन्हें इस टमाटर के पौधे से कुछ सीख लेनी चाहिए।

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