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फिर आ गया अशोज का महिना! जिसका हर पहाड़ी को इंतजार रहता !

फिर आ गया अशोज! जिसका हर पहाड़ी को इंतजार रहता ! जी हां हर पहाड़ी को ! जहां पहाड़ में रहने वाले की सारी दिनचर्या बदल जाती है और वो कमरकस के तैयार हो जाता है इस काम के महायुद्ध में दो दो हाथ करने को …! वहीं परदेसी पहाड़ी की आस भी बढ़ जाती है कि दीवाली में दो मुट्ठी भट्ट गहत मिल जायेंगे ! 

अनेकों रंग लिए होता है ये आशोज! जहां कनौव की चाय के प्यार के साथ पोल्ट के लेसू और सब्जी का स्वाद मिलता है। लूठे के रूप में पहाड़ियों का अनोखा टेलेंट दिखता है ।

और हां अगर अपनी सीमा रेखा से आगे दो पुए ज्यादा घास काट लिए तो फिर दराती दिखाते हुए सारे खानदान का श्राद्ध भी करवाता है अशोज!

यह भी पढ़िये :-  पूरी बाखली पलायन कर गयी जहां कभी खुशियाँ बसती थी। The entire Bakhli has fled where happiness used to live.

और हां कभी अगर पहाड़ियों का असली स्टेमिना और प्रोडक्टिविटी देखने का मन करे तो अशोज के महीने पहाड़ आकर देखना

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