जब सोमनाथ के मंदिर को विध्वंस करने के लिए मोहम्मद गजनवी सोमनाथ पहुंचा तो वहां के राजगुरु आचार्य ब्रह्मभट्ट ने राजा से कहा कि एक राजा विष्णु का अवतार होता है और मैं इस ज्योतिर्लिंग शिवलिंग की ज्योति आपके शरीर में प्रत्यारोपित करता हूँ।
उसके पश्चात आचार्य ने राजा को वहां से प्रस्थान करने को कहा। तत्पश्चात जब गजनी ने मंदिर में प्रवेश किया तो आचार्य ने गजनी को कहा कि तुम अपने गुर्ज को मेरे मस्तक पर मारो क्योंकि आचार्य ब्रह्मभट्ट को ज्ञात था कि मस्तिष्क के अंदर जो रक्त रहता है उसे ब्रह्मकपाली कहते हैं और ये रक्त बहुत ही पवित्र होता है, यदि गजनी ने मेरे शीश पर गुर्ज को मारा तो महादेव का रक्त स्नान के अभिषेक द्वारा विसर्जन हो जाएगा और एक बार विसर्जन होने के बाद कोई भी मुर्ती या पत्थर जिसमें प्राण प्रतिष्ठा कि गई हो वो मिट्टी के समान हो जाता है। ऐसे ही नहीं शेष रहा है हमारा पवित्र सनातन धर्म। इसकी रक्षा के लिए आचार्य ब्रह्मभट्ट जैसी लाखों विभूतियों ने अपनी आहुति दी है।