Home » Culture » पत्नी का बनाया खाना क्यों नहीं खाते थे उत्तराखंड के “मर्द”। Why did the “men” of Uttarakhand not eat food cooked by their wives?

पत्नी का बनाया खाना क्यों नहीं खाते थे उत्तराखंड के “मर्द”। Why did the “men” of Uttarakhand not eat food cooked by their wives?

उस दौर के खानपान परंपरा में भाति-भाति के निषेधों और रूढियों के अलावा छकोसलेबाजी भी कम नहीं थी। विषेशकर उच्च जाति के लोगों में कई तरह के ढोंग प्रचलित थे। प्रोफेसर डीडी शर्मा के मुताबिक विशेषकर पुरोहित वर्गीय ब्राह्मणों में एक बहुत बड़ा ढोंग यह प्रचलित था, और अभी भी है, कि यदि अन्य जाति का कोई व्यक्ति आलू, घुइयां या किसी अन्य कन्द को उबाल कर उसे छील कर उसे नमक, मिर्च, मसाले के साथ छौंक कर चाय-पानी, दही-दूध आदि किसी भी पदार्थ के साथ खाने के लिए दे तो उसे खाने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती है, किन्तु यदि इन्हीं पदार्थों को पानी डालकर, पकाकर उसकी सब्जी बना दी जाय तो वह ‘अच्वख’ यानी अपवित्र हो जाती है और वे उसे ग्रहण नहीं कर सकते। इसी प्रकार दूध या दही के छींटे डालकर गूंदे गये आटे से बनी पूड़ियों को तो ‘चोखा’ कह कर खा लिया जाता है, किन्तु केवल पानी में गूंदे गये आटे से बनी व घी में तली गयी पूड़ियों को नहीं। ‘च्वख यानी शुद्ध और अच्वख यानी अशुद्ध का यह ढोंग अन्य वर्गीय लोगों में भी देखा जाता है। फलतः वे लोग घी के पराठों व सूखी सब्जी को अन्य वर्ग के लोगों के हाथ से भी ग्रहण कर लिया करते हैं, किन्तु यदि घी में बनी रोटियों को रसदार, हरी या सुखी सब्जी या दही-दूध के साथ दिया जाय तो उन्हें अशुद्ध मान कर नहीं खाया जाता था। प्रोफेसर शर्मा के मुताबिक इससे भी विचित्र एक अन्य प्रथा जो खासकर पुरोहित वर्गीय ब्राह्मणों अथवा बाह्मण-क्षत्रियों के संदर्भ में भी देखी जाती थी वह यह कि थी कि यदि कोई ऐसा व्यक्ति, जिसके हाथ का दाल भात के अलावा कोई भोजन नहीं किया जा सकता, वह सब्जी काटकर, छौंक कर चूल्हे पर चढ़ा दे और आटा गूंद कर रख दे तो उन्हें उस रसोई में बना कर खाने में कोई आपत्ति नहीं होती, किन्तु वही व्यक्ति यदि उस सब्जी में नमक डाल दे तो वह अशुद्ध मान लिया जाता था। इससे भी अधिक हास्यास्पद ढोंग रोटी को लेकर यह था कि यदि पंडित जी को रोटी बनाना नहीं आता और जजमान की पत्नी रसोई के बाहर से अपने हाथ से रोटी बेल कर पंडित के हाथ में या किसी थाली जैसे चौड़े बर्तन में डाल देती है तो पंडित जी उसे तवे पर डाल कर सेक लेते हैं। इसके बाद वे अपनी रोटी-सब्जी लेकर अटाली में आ जाते हैं और घर की स्त्रियां चूल्हे में जाकर अपनी रोटी बनाती हैं इसमें उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती है।

यह भी पढ़िये :-  कोदे की रोटी और पिस्यूं लूण (चटनी)। 

Related posts:

पेंडुला - मैखंडी मोटर मार्ग पर काटल गांव के निकट बोलेरो दुर्घटना में तीन की दुखद मौत। 

Uttarakhand Latest

पढ़िये सेंधा नमक की हकीकत। Read the truth about rock salt.

Uttarakhand Latest

उत्तराखंड की चार फेमस महिला यूट्यूबरस, आपकी पसंदीदा व्लॉगर कौन हैं ?

Culture

विलुप्त होती घर के छत लगाने की प्राचीन और भरोसेमंद विधि स्लेट।

Our Village

आखिर क्या मजबूरी रही होगी इतना अच्छा मकान और उसपे दुकान फिर भी इसको छोड़कर शहरों में पलायन करके चले ग...

Culture

मशहूर youtuber प्रियंका तिवारी अपनी कामयाबी के लिए अपने पति का बहुत बड़ा योगदान मानती हैं।

Uttarakhand Latest

उत्तराखंड में स्वरोजगार को प्रत्मिकता देते हुए। होली के ढ़ोल से लेकर सभी प्रकार के वाद्य यंत्र।

Culture

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए।

Uttarakhand Latest

उत्तराखंड के साथ साथ देश का गौरव 'अंगद बिष्ट' का विश्व की सबसे खतरनाक फाइट MMA (Mixed Martial Arts) ...

Uttarakhand Latest

About

नमस्कार दोस्तों ! 🙏 में अजय गौड़ 🙋 (ऐड्मिन मेरुमुलुक.कॉम) आपका हार्दिक स्वागत 🙏 करता हूँ हमारे इस अनलाइन पहाड़ी 🗻पोर्टल💻पर। इस वेब पोर्टल को बनाने का मुख्य उद्देश्य 🧏🏼‍♀️ अपने गढ़ समाज को एक साथ जोड़ना 🫶🏽 तथा सभी गढ़ वासियों चाहे वह उत्तराखंड 🏔 मे रह रहा हो या परदेस 🌉 मे रह रहा हो सभी के विचारों और प्रश्नों/उत्तरों 🌀को एक दूसरे तक पहुचना 📶 और अपने गढ़वाली और कुमाऊनी संस्कृति 🕉 को बढ़ाना है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*
*