त्रेता युग में रावण, कुम्भकरण का वध करने के पश्चात कुछ वर्ष अयोध्या में राज्य करके राम ब्रह्म हत्या के दोष निवारणार्थ सीता जी, लक्ष्मण जी सहित देवप्रयाग में अलकनन्दा भागीरथी के संगम पर तपस्या करने आये थे। इस संबध में केदारखण्ड में लिखा है कि:-
यत्र ने जान्हवीं साक्षादल कनदा समन्विता।
यत्र सम: स्वयं साक्षात्स सीतश्च सलक्ष्मण।।
सममनेन तीर्थेन भूतो न भविष्यति।
जहां गंगा जी का अलकनन्दा से संगम हुआ है और सीता-लक्ष्मण सहित श्री रामचन्द्र जी निवास करते हैं। देवप्रयाग के उस तीर्थ के समान न तो कोई तीर्थ हुआ और न होगा।
पुनर्देवप्रयागे यत्रास्ते देव भूसुर:।
आहयो भगवान विष्णु राम-रूपतामक: स्वयम्।।
केदारखण्ड ;अध्याय १५८-५४-५५ में भी दशरथात्मज रामचन्द्र जी का लक्ष्मण सहित देवप्रयाग आने का उल्लेख है। अध्याय १६२-५० में भी रामचन्द्र जी के देवप्रयाग आने और विश्वेश्वर लिंग की स्थापना करने का उल्लेख है।
राम भूत्वा महाभाग गतो देवप्रयागके।
विश्वेश्वरे शिवे स्थाप्य पूजियित्वा यथाविधि।।