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मध्यमहेश्वर जहां भगवान शिव की नाभी की पूजा की जाती है।Madhyamaheshwar where the navel of Lord Shiva is worshipped.

पंचकेदार में द्धितीय स्थान में मध्यमहेश्वर को माना गया है। मध्यमहेश्वर में भगवान शिव की नाभी की पूजा की जाती है। मध्यमहेश्वर उत्तराखण्ड के गढ़वाल क्षेत्र के रुद्रप्रयाग जिले में समुद्रतल से 3289 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। चारों और हिमालय पहाड़ो से घिरे इस रमणीय स्थान की खूबसूरती देखते ही बनती है। मध्यमहेश्वर के कपाट छः माह के लिए खोले जाते है। बाकी सर्दियों के छः माह उखीमठ में भगवान की पूजा अर्चना ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ मैं की जाती है।

मध्यमहेश्वर भगवान शिव के पंचकेदार मंदिरों में से एक है। पंचकेदारों में भगवान शिव के विभिन्न अंगों की पूजा की जाती है। शिवपुराण के अनुसार महाभारत युद्ध के पश्चात पांडवों को गुरु हत्या, गोत्र हत्या, अपने भाइयो की हत्या का दुःख सताने लगा। इसके प्रायश्चित का उपाय जानने के लिए लिए वे श्रीकृष्ण के पास गए, उनके समझाने पर भी जब पांडव प्रायश्चित करने का हठ नहीं छोड़ा तो श्रीकृष्ण ने उनसे वेदव्यास जी के पास जाने को कहा। वेदव्यास ने उन्हें कैलाश क्षेत्र में जा के भगवान शिव की तपस्या करने को कहा और उन्हें प्रसन्न कर अपने पाप से मुक्ति पाने का मार्ग बताया। बहुत समय हिमालय में भ्रमण के दौरान जब एक स्थान पर आकर कुछ दिन वही भगवान शिव की स्तुति करने लगे तब थोड़ा आगे एक विशालकाय बैल पर उनकी नज़र पड़ी। माना जाता है स्वयं भगवान शिव उन की परीक्षा लेने हेतु बैल रूप में वहां प्रकट हुए थे, लेकिन गोत्र हत्या के दोषी पांडवो से नाराज़ थे और उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे। परन्तु पांडवो ने उन्हें पहचान लिया था और उनका पीछा करने लगे। एक समय ऐसा आया की बैल ने अपनी गति बढ़ानी चाही लेकिन भीम दौड़कर बैल के पीछे आने लगे। ये देख भगवान शिव रुपी बैल ने स्वयं को धरती में छुपाना चाहा, जो हि बैल का अग्र अर्ध भाग धरती में समाया, वैसे ही भीम ने बैल की पूंछ अपने हाथो से पकड़ ली। यही पीछे का भाग केदारनाथ के रूप में विद्यमान हुआ।

यह भी पढ़िये :-  कोट भ्रामरी मंदिर काज्यूली, डंगोली, बागेश्वर, उत्तराखंड। Kot Bhramari Temple Kajyuli, Dangoli, Bageshwar, Uttarakhand.

कहा जाता है की बैल का अग्र भाग सुदूर हिमालय क्षेत्र में जमीन से निकला जो की नेपाल में था, जो की प्रसिद्ध पशुपतिनाथ नाम से पूजा गया। बैल का शेष भाग नाभि या मध्य भाग मदमहेश्वर में,भुजाएँ तुंगनाथ मैं मुख रुद्रनाथ में (शेष नेपाल पशुपति नाथ में) तथा जटा कल्पेश्वर में निकली।

कैसे पहुँचे
मदमहेश्वर जाने के लिए रुद्रप्रयाग जिले के उखीमठ पहुँच कर, रांसी तक मोटर मार्ग से पहुंच सकते है। रांसी मोटर मार्ग से जुड़ा आखिरी गाँव है। यहाँ से मदमहेश्वर को लगभग किमी 17 km का पैदल मार्ग है। पैदल मार्ग में गोण्डार, गांव मार्ग में मिलते है। जहाँ रहने और खाने पीने की उचित व्यवस्था है।। सम्पूर्ण मार्ग प्राकृति नज़ारों से भरा होता है। मध्यमहेश्वर जाने के लिए इन गावों से खच्चर व पोर्टर भी मिल जाते है।

यह भी पढ़िये :-  वराह अवतार (Varaha Avatar) हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु के दस अवतारों में से तृतीय अवतार हैं

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