
नमस्कार दोस्तो हमारे बड़े-बुजुर्ग कहते थे चाहे कितनी ही विपत्ति आ जाए पर अपने पूर्वजों की घर कुड़ी मत बेचना क्योंकि ये पितृभूमी ही एकदिन काम आयेगी. अपने गाँव का ठंडा पानी खुली हवा और शांत वातावरण मित्रो हमारी जन्मभूमी हमारे पहाड़ में ही हमारे प्राण बसे हैं. हम कहीं भी रहें पर हर शुभ कार्य अपनी जन्मभूमी में उसी रिती रिवाज के साथ अपने भाई विरादरों के बीच ही करें, क्योंकि इसी में हमारे पूर्वजों के प्राण बसते हैं. इससे जो सकारात्मक उर्जा मिलेगी वो हमारे वंश में पीढी दर पीढी ट्रान्सफ़र होती चली जायेगी. साल में 1-2 महीने वहीं बितायें,दोस्तो मेरी आपसे यही अपील है कि पहाड़ में अपनी घर कुड़ी को फिर से आबाद करे इस तरह बंजर न छोड़े🙏